*”करवा चौथ” पर जयकुमार तिवारी की एक कविता*
देव भूमि जे के न्यूज ऋषिकेश –
“करवा चौथ” –
शाम को जब वापस घर आया.
दरवाजे पर खड़ा होकर घंटी बजाया,
अंदर से आवाज आई “खुला है आजाओ”
घर में प्रवेश करते ही दिखा अजीब नजारा.
घर को माहौल बदला था सारा.
सर से पांव तक पत्नी सजी हुई है,
मेरे कानों में लगा फिर से शहनाईयां सी बजी हुई है.
देख ये नजारा था मै आवाक्,
तभी तन्द्रा हुई भंग पत्नी लगाई बॉक्.
“जूते उतारिए खाना परोसूं ”
सहमते सहजते मैने कहा ~” क्यों भाग्यवान ”
खाने में मिलेगा क्या जूता रूपी पकवान.
वो बोली ~क्या कहते हो जी.
उल्टा सीधा क्यों बकते हो जी.
आज करवा चौथ का व्रत है,
सभी नारियों का ये मत है_
” आजके दिन”पति पत्नी के लिए भगवान समझा जाता है.
मैने मन ही मन सोचा.. काश यह व्रत रोज ही आता.
हर पति होता राम और पत्नी को सीता समझा जाता.
लेखक~जय कुमार तिवारी ऋषिकेश.