*स्वर्गाश्रम ट्रस्ट के संस्थापक श्री 108 बाबा काली कमली वाले स्वामी आत्मप्रकाश जी महाराज का 96 वां ब्रह्मनिर्वाणोत्सव दिव्यता और भव्यता के साथ मनाया*
देवभूमि जेके न्यूज ऋषिकेश- स्वर्गाश्रम ट्रस्ट के संस्थापक श्री 108 बाबा काली कमली वाले स्वामी आत्मप्रकाश जी महाराज का 96 वां ब्रह्मनिर्वाणोत्सव दिव्यता और भव्यता के साथ मनाया गया।
इस अवसर पर अनेकों कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें प्रमुख रूप से सोमवार 10 मार्च 2025 को समाधि परिसर में अखंड रामायण का पाठ किया गया मंगलवार 11 मार्च को समाधि परिसर में श्री रामायण पाठ का भोग एवं हवन पूजा पाठ किया गया।
11:00 बजे बैंड बाजे और मनमोहक धार्मिक झांकियों के साथ पूरे नगर में शोभा यात्रा निकाली गई। बाबा जी की मूर्ति रथ पर विराजमान थी लोग बाबा जी की जय जयकार कर रहे थे ।फूलों की बारिश हो रही थी, जगह-जगह स्थानीय निवासियों, दुकानदारों ने बाबा जी की सवारी का जोरदार स्वागत किया। बाबा जी के रथ को खींचकर अपने आप को सौभाग्यशाली माना।
शोभा यात्रा के पश्चात विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें साधु संतों के साथ देश के कोने-कोने से आए भक्तों ने भंडारे में प्रसाद ग्रहण किया। इसके साथ ही पतित पावनी मां गंगा के तट पर संत सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें उच्च कोटि के संतों ने बाबा जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्हें उच्च कोटि का संत बताया। संतों में ने अपने प्रवचन में बाबा जी के विषय में विस्तार से बदलते हुए उपस्थित भक्तों को बताया कि संतों, वृक्षों, नदियों और धरती के कार्य, ये सब हमेशा सृष्टि के कल्याण, अर्थात सभी प्राणियों के लिए होते हैं, न कि स्वार्थ के लिए। साधु और संत अपना ज्ञान और शक्ति परमार्थ के लिए, अर्थात दूसरों की भलाई के लिए उपयोग करते हैं, न कि अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए।
शंकर जी ने भी संत की महिमा कही हे उमा! संत की यही बड़ाई (महिमा) है कि वे बुराई करने पर भी (बुराई करने वाले की) भलाई ही करते हैं। (विभीषणजी ने भी रावण से कहा) आप मेरे पिता के समान हैं, मुझे मारा सो तो अच्छा ही किया, परंतु हे नाथ! आपका भला श्री रामजी को भजने में ही है।
साधु का स्वभाव परोपकारी होता है, जैसे वृक्ष कभी अपना फल स्वंय नहीं खाता है और नदी जिस प्रकार से स्वंय के नीर का संचय नहीं करती है। लोक कल्याण के हेतु बहती रहती है। वैसे ही साधु और संत भी अपने ज्ञान का उपयोग परमार्थ के लिए ही करते हैं, स्वंय के कल्याण के लिए नहीं। साधु भी अपने सुखदुःख कष्टो की चिंता न करके अन्य के लिए अपने शरीर मन आत्मा से कल्याण का भाव रखता है।कबीर साहेब की इससे प्रकृतिवादी द्रष्टिकोण का भी पता चलता है। प्रकृति सदा देने का भाव रखती है वह बदलें में कुछ भी नहीं चाहती है।
श्री 108 बाबा काली कमली वाले स्वामी आत्मप्रकाश जी ने कठिन परिस्थितियों में स्वर्गाश्रम ट्रस्ट की स्थापना कर यात्रियों साधु संतों के लिए एक मिसाल कायम किया। कठिन परिस्थितियों में यात्रा को सुगम और सरल बनाने के लिए बाबा जी का योगदान हमेशा याद किया जाएगा। बाबा जी का जीवन हमेशा दूसरों के लिए समर्पित रहा। आज इतने सालों बाद भी कोई भी यात्री अथवा संत ऋषिकेश आता है तो बाबा जी की गद्दी पर अवश्य आता है, और बाबा जी का के गद्दी का दर्शन कर अपने आप को सौभाग्यशाली और अपनी यात्रा को संपूर्ण मानता है।
आपको बता दें की स्वर्गाश्रम ट्रस्ट अपने नाम के अनुरूप सुंदर स्वास्थ्य प्राकृतिक और सात्विक वातावरण में स्हिथित मालय की गोद में एक परिपूर्ण स्थान है। यह हिमालय की छत्रछाया में गंगा जी के बाई तट पर ऋषिकेश लक्ष्मण झूला के मध्य में बसा हुआ है। यहां प्राचीन काल से ही बड़े-बड़े ऋषि मुनि तपस्या करते आए हैं तथा इसकी महिमा का वर्णन पुराणों में भी विशेष रूप से मिलता है। स्वर्गाश्रम ट्रस्ट सन 1938 से चली आ रही है एक धार्मिक संस्था है एवं सदैव सनातन के लिए अग्रसर रहता है। स्वर्गाश्रम ट्रस्ट का उद्देश्य उन सभी व्यक्तियों को आध्यात्मिक लाभ पहुंचाना है जो समय-समय पर धार्मिक भावनाओं में आकर इसके नियम और मर्यादा के अनुसार यहां निवास करते हैं ।इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ट्रस्ट की ओर से अनेंको सेवा चलाया जा रहा है जिसमें संतों का कुटीर यहां पक्की कुटियाएं निर्मित है अनेकों अच्छी-अच्छी कुटिया बनी हुई है जिसमें संत महात्माओं तथा यात्रियों के निवास की व्यवस्था की जाती है। आज भी संत महात्मा इन कुटिया में तपस्या रत रहते हैं। अन्न क्षेत्र के माध्यम से संत और महात्माओं का तथा अन्य व्यक्तियों निराश्रित और जरूरतमंदों को प्रतिदिन दोनों समय निःशुल्क भोजन दिया जाता है ।संस्कृत विद्यालय का संचालन कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों को निःशुल्क शिक्षा एवं भोजन आदि की भी व्यवस्था है।
बाल विद्या निकेतन के माध्यम से विद्यालय में यहां पर स्थानीय बच्चों के लिए नर्सरी से कक्षा 10 तक विद्या अध्ययन की सुविधा है ।आयुर्वेदिक औषधालय के
द्वारा संत, महात्माओं तथा यात्रियों की धर्मार्थ चिकित्सा की जाती है सभी औषधियों का निर्माण अनुभवी वैद्यों द्वारा हिमालय की जड़ी बूटी और गंगाजल से तैयार किया जाता है, जो अन्यत्र दुर्लभ है ।इसके साथ ही गौशाला में संत महात्माओं एवं यात्रियों की सुविधा के लिए आश्रम में गौशाला भी है यह सभी कार्य स्वर्गाश्रम ट्रस्ट आपकी बहुमूल्य योगदान से चलता है और मानव साधु-संतों की सेवा करना संभव हो पाता है।
इस संपूर्ण धार्मिक आयोजन में महामंडलेश्वर असंगानंद सरस्वती जी महाराज निकेतन। स्वामी सच्चिदानंद जी। स्वामी केशवानंद जी महाराज। स्वामी रवि पर्पन्नाचार्य। स्वामी रामायण जी महाराज ,आचार्य नारायण दास जी महाराज, श्याम स्वरूपानंद जी महाराज। स्वामी गुरु चरण मिश्रा जी, मोनी बाबा जी, प्रबंधक वी के के श्रीवास्तव , जयेश कुमार झा, रुदल यादव ,सुरेश भट्ट, स्वामी मैथिली शरण जी महाराज, गणेश चंद्र भट्ट ,चक्रपाणि मैठाणी ,विनायक भट्ट, सतीश जोशी, गणेश नौटियाल, कृष्ण किशोर, कृष्ण गोपाल। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता महामंडलेश्वर विद्यानंद पुरी जी महाराज अध्यक्ष शिवालय आश्रम ऋषिकेश द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में विशेष रूप से नारायण दास जी, अनूप कोठियाल, सौरभ, अनिल तिवारी, विनोद, बबलू ,भानु मित्र शर्मा, सूर्य प्रकाश, इंद्रप्रकाश अग्रवाल ,आयुष, अनुराग, पंकज, शिवम ,तुषार, राजेंद्र चमोली, रामेश्वर थपलियाल, हरपाल सिंह नेगी, नारायण सिंह सहित तमाम लोग शामिल थे।
इस पूरे आयोजन का देखें वीडियो –