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*संवाद का सशक्त माध्यम है पदयात्रा*

(रमेश चंद शर्मा-विनायक फीचर्स)

यात्रा के विभिन्न प्रकार है। पैदल, कांवड़, गधा, घोड़ा, ऊंट, हाथी, याक, बैल, भैंसा, कुत्ता गाड़ी, बैलगाड़ी, ऊंटगाड़ी, तांगा, रथ, नाव, जहाज, साईकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल, जीप, कार,बस, हवाई जहाज, हवाई यानसे लेकर अब राॅकेट भी। इनमें पैदल यात्रा का विशेष स्थान और महत्व रहा है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम से लेकर गांधी, विनोबा, जयप्रकाश, तक पदयात्राओं का अच्छा खासा चलन रहा है।
भारतीय दर्शन, संस्कृति और परम्परा हमेशा सर्व समावेशक रही है। यहाँ खण्ड का नहीं पूर्ण का चिंतन हुआ है। वसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष भारत भूमि से ही हुआ है। हमारा ध्येयवाक्य “अनेकता में एकता” का रहा है। “सत्यमेव जयते”, “जय जगत”, “सबै भूमि गोपाल की”, “सत्याग्रह”, “जन शक्ति” ने दिशा निर्देश दिया है।
पदयात्रा बहुत ही पुरातन काल से एक सशक्त माध्यम रहा है। जब पहिया, चक्कर मानव जीवन में नहीं आया था, उससे भी बहुत पहले से पदयात्रा अस्तित्व में थी। एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने के लिए पदयात्रा ही एकमात्र साधन था। धीरे-धीरे पशु, पहिया, यंत्र वो भी गति बढ़ाते हुए इंसान के हाथ लगता रहा और तेज से तेज गति के साधन, यंत्र, उपकरण तैयार किए जाने लगे। औद्योगिक क्रांति ने केन्द्रित उत्पादन, एक साथ अधिक उत्पादन के द्वारा एक ऐसा बाजार, मंडी खड़ी की जिसमें इंसान भी एक साधन, वस्तु के रूप में देखा जाने लगा। श्रम और श्रमिकों का राज्य और पूंजी ने मिलकर खुलेतौर पर शोषण किया। श्रम एक शक्ति न रहकर शोषित, कमजोर वर्ग के कार्य के रूप में देखा जाने लगी। आदमी के स्थान पर मशीन, यंत्र कब्जा करने लगे। असीम विकास की राह मानव ने अंधी दौड़ के रूप में धारण की। इससे केन्द्रीयकरण का रास्ता खुला। साधन जो प्राकृतिक रूप से सबके लिए सहजता से उपलब्ध थे। वे राज्य सरकार, सत्ता, बड़े व्यापारियों के हाथों तक सीमित होते-होते, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक के कब्जे में आने लगे। गरीब-अमीर, छोटे-बड़े का अंतर थोड़ा बढ़ा ही नहीं बल्कि असमानता की खाई असहनीय हो गई। लोगों, समुदाय, समाज के हाथ से साधन फिसलने लगे। हालात ऐसे बने कि एक ओर कुछ नहीं तो दूसरी ओर साधन, संपत्ति के अपार भंडार बन गए।
आज दुनिया में एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिससे परस्पर संकीर्णता, असहिष्णुता, अलगाव, विद्वेष, भय, भेद, शोषण, लूट, हिंसा, आतंक, युद्ध, नफरत की भावना बढ़ती जा रही है। इंसान से ज्यादा महत्वपूर्ण बाजार, विज्ञापन, उत्पाद, पैसा होता जा रहा है।
दुनिया में हिंसा का श्राप, पैसे का पाप, धरती का ताप बढ़ रहा है। इस श्राप, पाप, ताप से बचने के लिए हमें प्रकृति की ओर लौटना होगा। ग्राम संस्कृति, खेती, पशुपालन, घरेलू उद्योग, ग्रामोद्योग, कुटीर उद्योग, लघु उद्योग की राह आशा की किरण के रूप में जुगनू की तरह टिमटिमाती नजर आ रही है।
उपरोक्त परिस्थिति में विनोबा जी का यह विश्लेषण दिशा-दर्शक है।”विश्व की भिन्न-भिन्न जमातों को अपने मे समा लेने वाला भारत एक अद्भुत देश है। इस देश ने अपने हजारों वर्षों के इतिहास में कभी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया। बल्कि बाहर से आने वालों शकों, हूणों, पारसियों, मुसलमानों, यहूदियों, ईसाईयों आदि सबका स्वागत ही किया। इसलिए रवीन्द्रनाथ ने भारत को महामानव-सागर कहा है। प्रेम के बिना सबको समा लेने की कला घटित नहीं हो सकती। इस भारत-भूमि में सबको प्राप्त प्रेम के कारण यह हमारा घर है, ऐसा सबको लगा। कभी-कभी दो जमातें एकत्र होती है तो आपस में कुछ संघर्ष भी होता है,परन्तु अंत मे शुद्ध प्रेम ही कायम रहता है। वह प्रेम ही भारत का आधार है। भारत मे एक मिश्र(मिली-जुली) संस्कृति का निर्माण हुआ है। मुस्लिम, क्रिश्चियन, पारसी, यहूदी, जैन, बौद्ध आदि संस्कृतियों का योगदान स्वीकार करके भारत की संस्कृति सम्पन्न(समृद्ध) हुई है। संसार के किसी भी भाग से आये हुए अच्छे विचारों को अपने मे समाहित कर उसे अपना ही रूप देना, भारत की विशेषता रही है।”
पद यात्रा की प्रासंगिकता, आवश्यकता, कदम को जानने, समझने, पहचानने के लिए उपरोक्त भूमिका को अपने दृष्टिकोण में रखना महत्वपूर्ण, उपयोगी साबित होगा।
पदयात्रा एक सशक्त संदेश प्रदान करती है। सत्य, शांति, अहिंसा, प्रेम, करुणा, समता, समानता और सद्भावना का संदेश देते हुए अपने गंतव्य पर पहुंचती है।
संसार के प्रारंभ से ही मानव के वजूद के साथ ही पदयात्रा की प्रक्रिया शुरू हुई। यात्रा के रूप, प्रकार, उद्देश्य,भाव, विचार, संदेश चाहे बदलते रहे। यात्रा भोजन, भजन, खोज, दर्शन, समझ, जानकारी, भ्रमण, मस्ती, आंनद, शिक्षा, संपर्क, संवाद, संदेश, स्वास्थ्य, एकांत, तलाश, साधना, जन जागरण, दबाव, बदलाव, व्यापार, प्रचार-प्रसार, विस्तार, शांति, युद्ध आदि के लिए भी होती रही है।
धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक, सांगठनिक, आर्थिक, राजनैतिक, दार्शनिक यात्राओं की श्रृंखला दुनिया में जारी रही है।
यात्राओं ने समझने-पहचानने, जानने-देखने, प्रचार-प्रसार, आदान-प्रदान, खुशी-तबाही, लाभ-लूट, विकास-विनाश, विस्तार, विसर्जन, खोजने-तलाशने के अनेक अवसर प्रदान किए। समाज के निर्माण, विकास, ज्ञानवर्धन, फैलाव में यात्राओं का बड़ा योगदान रहा है। साहित्य निर्माण में भी यात्राओं का विशेष महत्व रहा है। यात्रा वृत्तांत पर व्यापक साहित्य लिखा गया है। जिससे साहित्य जगत को समृद्ध बनाने में मदद मिली। एक ओर सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए तो दूसरी ओर बुराई, लूट, रोग, संहार, विनाश, युद्ध जैसे नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिले।
गांधी, विनोबा की कुछ यात्राओं ने तो अपनी ओर सारे विश्व का ध्यान आकर्षित किया था। गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका की ट्रांसवाल यात्रा, नमक सत्याग्रह की दांडी यात्रा, नौआखाली की शांति यात्रा, संत विनोबा भावे की भूदान यात्रा, दिल्ली पैकिंग यात्रा (जिसे उत्तर पूर्व से आगे जाने नहीं दिया गया), ईपी मेनन, सतीश कुमार की बगैर पैसे के विश्व भ्रमण की यात्रा, पवनार की बहनों द्वारा की गई यात्रा आदि अनेक यात्राओं की चर्चा की जा सकती है। यात्राओं की एक लम्बी सूची है। यात्राओं ने जन मानस में अमिट छाप छोड़ी है।
यात्रा प्रेरणा की स्रोत है। यात्राओं ने जन जन के साथ देश और दुनिया में हलचल पैदा की है। सोचने-समझने- विचारने का अवसर प्रदान किया है। विश्व के सामने अहिंसा, करुणा, प्रेम सत्याग्रह का संदेश पहुंचाया है। मानवीय मूल्यों, सरोकारों की आवाज बुलंद की है। अंतिम व्यक्ति के जीवन में आशा की किरण जगाई है। राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक संवाद पहुंचाया है। साधारण लोगों को जागरूकता प्रदान कर, जुबान को आवाज दी है। लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखने का लोगों को अवसर दिया है। चलते पांवों से जो शक्ति, ऊर्जा पैदा होती है, जो संगीत निकलता है, जो ध्वनि प्रज्जवलित होती है, जो आत्मशक्ति उत्पन्न होती है, उसने अंहकारी, निरंकुश सत्ता को भी सोचने समझने के लिए झकझोरने का काम किया है। कुछ कदम उठाने के लिए दबाव बनाया है। प्रेम की शक्ति को प्रकट किया है। आम जन में विश्वास जमाया है। सिद्ध किया है कि प्रेम की सामूहिक शक्ति से बदलाव संभव है।
भूदान यात्रा के दौरान जिस प्रेम, त्याग, श्रृद्धा, भक्ति भाव, निष्ठा से लोगों ने संत विनोबा भावे को अपनी जमीन से निकालकर जो अंशदान दिया। वह एक शानदार इतिहास है। मांगने से जमीन जायदाद भी मिल जाती है। यह प्रमाणित करता है कि प्रेम, सहयोग, सहकार, बांटने की चाह मानव का सहज स्वभाव है। यह अलग बात है कि आजकल के माहौल, वातावरण, अंधी दौड़ के कारण सुप्तावस्था में चला गया है, या पहुंचा दिया गया है। उसे फिर से जागृत करने की आवश्यकता है। लोगों के दिलों दिमाग को छूने, उन तक पहुंचने की आवश्यकता है। भूदान के प्रसंगों, घटनाओं, प्रयासों, किस्सों को देखें, पढ़ें, सुनें, समझें तो आज भी प्रेरणा मिलती है। ऊर्जा प्राप्त होती है। उत्साहवर्धन होता है। समाज का सही एवं सकारात्मक रूप प्रकट होता है।
ऐसे भी उदाहरण है कि जिसके खुद के पास निमित्त मात्र की जमीन है, जिसमें उसके परिवार का गुजारा, पालन-पोषण भी ठीक से नहीं होता है। फिर भी वह आग्रहपूर्वक अपनी जमीन से एक टुकड़ा भूदान में बाबा के चरणों में समर्पित करता है, यह कहकर कि मुझे भी इस यज्ञ में आहुति देनी है। सहर्ष खुशी खुशी सपरिवार आकर। ऐसे कितने ही प्रसंग आए जिनको देखकर विनोबा जी भी आश्चर्य में पड़ जाते है। अपनी पूरी की पूरी जमीन ही भूदान में देने वाले भी अनेक प्रेरक प्रसंग रहे हैं। दूरदराज के इलाकों में भूदान यात्रा के पहुंचने पर दूर दूर से चलकर बड़ी संख्या में लोगों का शामिल होना, मिलना, सहयोग सहकार करना, जुटना सहज प्रक्रिया बन गया। ऐसे सुंदर प्रेरक प्रसंग आज की पीढ़ी तक कैसे पहुंचें। यह बड़ा सवाल सामने है।
दान दो इकठ्ठा, बीघे में कठ्ठा, दान दो दान दो, भूदान में दान दो, हमारा मंत्र,जय जगत। हमारा तंत्र, ग्रामस्वराज्य। हमारा लक्ष्य, विश्व शांति। ग्रामदान से बन जाएगा, गौकुल अपना गांव रे।
भूदान यह कहे, भूमिहीन कोई नहीं रहे। ग्रामदान अपनाएंगे, गांव मजबूत बनाएंगे।
ग्रामकोष बनाना है, गांव सशक्त बनाना है। गांव बनेगा, देश बनेगा, यह सबको समझाना है।
शांति सेना बनाएंगे, गांव गांव में शांति लाएंगे।
शांति सेना का यह नारा, शांत विश्व लगता प्यारा। भूदान यात्रा आई है, समता का संदेश लाई है। भूदान है प्रेम की भाषा, जगी देश में नई आशा।
पदयात्रा इसी परम्परा की एक कड़ी मानी जा सकती है। पदयात्रा जहां जहां से होकर गुजरती है वहीं नहीं बल्कि विश्व के हर कोने में अपने उद्देश्य के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाती है। प्रेम, शांति, अहिंसा का उपयोगी एवं महत्वपूर्ण संदेश देती है। दुनिया में पीछे धकेल दिए गए लोगों की आवाज, आस्था, विश्वास, ऊर्जा, आशा को बुलंद करने में पदयात्रा सहायक होती है। यह हिंसा, शोषण, लूट, अन्याय, अत्याचार, गलत नीतियों एवं विकास के कारण उजड़े, बिछडे़, पिछड़े, लुटे लोगों की आवाज को उजागर कर विश्व का ध्यानाकर्षण करने में सक्षम है। इससे लोगों की एकजुटता के प्रयासों को बल तो मिलता ही है सहमना लोगों से संपर्क, संवाद, परिचय भी बढ़ता है।(विनायक फीचर्स)

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