उत्तराखंड

*73 वे संविधान संशोधन के आगे की राह – ग्राम स्वराज्य पर एक कंप्लीट परिचर्चा*

देव भूमि जे के न्यूज ऋषिकेश,13/01/2023-

अटका कहां स्वराज, बोल दिल्ली! तू क्या कहती है? तू रानी बन गई, वेदना जनता क्यों सहती है? सबके भाग्य दबा रखे हैं, किसने अपने कर में? उतरी थी जो विभा, हुई बंदनी बता किस घर में?

राष्ट्रकवि डॉक्टर रामधारी सिंह दिनकर द्वारा दिल्ली से पूछे गए इस सवाल को संत, नेता, जज, अफसर, पत्रकार सबसे पूछते हैं कि देश की भलाई के लिए किए गए आपके कीर्तन गांव का भला नहीं कर सका हैं। आजादी की लड़ाई के समय आत्मनिर्भर गांव खड़ा करने का जो सपना दिखाया गया था वह कहां हवा हो गया है? होर्डर, स्मगलर और ब्लैक मार्केटियर्स सत्ता की राजनीति पर कब्जा जमाए बैठे हैं जबकि हर गली, गांव, मोहल्ले से नेतृत्व खड़ा करना था | आजादी की लड़ाई के सपने कैसे साकार होंगे! बहस करते हैं।

ग्राम स्वराज का अतीत-

प्रलय के बाद पहली बार मनु ने अराजक समाज को संवैधानिक संस्थागत स्वरूप

दिया था | पैदावार के छठे हिस्से पर राजा का अधिकार होता था | मनु की 14 पीढियो ने राज किया ।

इसवी सन से लगभग 8 से 10 हज़ार साल पहले इनका राज होना प्रकाश में आता है | ग्राम स्वराज

की शुरुआत विद्वान विश्लेषक यहीं से मानते हैं। आगे चलकर इसी कुल में इक्ष्वाकु राजवंश का

अभिर्भाव हुआ जिसकी 12वी पीढ़ी में राजा हरिश्चंद्र हुए हैं। इस वंश से अनेको राजवंशों का उदय

हुआ | सम्राट मांधाता, राजा दिलीप, भागीरथ, जनक आदि अनेकों राजा इस क्रम में हुए जिन्होंने

मनु की कर प्रणाली को फॉलो किया । पैदावार का छठा हिस्सा राजकर के रूप में लिया जाता था ।

सम्राट भरत के बाद महाभारत काल उपनिषदों का अनुकरण करता था। सम्राट बिंबिसार,

अजातशत्रु, उदयन, प्रसेनजीत के काल में बड़े-बड़े किंगडम स्थापित हुये जो सदियों तक जारी रहे ।

नंद वंश, मौर्य वंश, शुंग वंश के बाद ई सन शुरू हो जाता है। मौर्य वंश जैसे कट्टर केंद्रीकृत सरकार

में भी गांव की स्वायत्तता बरकरार रही। राजाओं के वित्त विभाग से ग्राम प्रधानों का सीधा संपर्क

होता था। राजा का हस्तक्षेप गांव की व्यवस्था, विकास एवं न्यायपालिका में नहीं होता था ।

भारतीय इतिहास में गुप्त साम्राज्य तथा उसके बाद हर्षवर्धन का साम्राज्य लगभग 400 वर्षों का रहा । इतिहासकार इस काल को भारतीय इतिहास का क्रमशः गोल्डन एज एवं डायमंड एज बताते हैं। इन 400 वर्षों में ग्राम सभा निर्वाचित हुआ करता था तथा संस्थागत आकार में पूरी तरह व्यवस्थित रहा है। केंद्रीय वित्तमंत्री से पूर्ववर्तियो की तरह ही संबंध होता था । मध्यकालीन भारत में भी ग्राम स्वराज पूरी तरह सक्रिय था । हां शिक्षा से संबंधित सब्सिडी को मुगलों ने बंद कर दिया | शिक्षा पंचायत के ज़िम्मे में हो गया था। कहा जाता है कि भारत आकर मुगलों ने राज करना सिखा । पहली बार अंग्रेजों ने गांव की व्यवस्था करने का अधिकार गांव वालों से छीन लिया। अंग्रेजों ने ग्राम स्वराज को ध्वस्त कर नई प्रशासन प्रणाली, शिक्षा प्रणाली और कर प्रणाली लागू किया। अंग्रेजों का सिद्धांत था बांटो लूटो और जल मार्ग से सामग्रियों का यूरोप पहुंचाओ | अंग्रेजों की सत्ता आने के पूर्व गांव में ग्राम सभा होता था | इसके सदस्य किसी काल में निर्वाचित और किसी काल में मनोनीत हुआ करते थे। यह ग्राम सभा अपना ग्राम प्रधान तथा कार्यकारिणी का गठन करता था। यह कार्यकारी समिति, ग्राम सभा अध्यक्ष से मिलकर गांव में न्याय, प्रशासन, विकास के साथ-साथ इवेंट भी आयोजित करके अपने संस्कृति और सहकार को मजबूत करते थे ।

पुनर्जागरण मूवमेंट के काल में स्वामी दयानंद सरस्वती ने स्वराज शब्द का इस्तेमाल आधुनिक काल में पहली बार किया । स्वराज को विश्लेषित करते हुए स्वामी जी ने कहा है कि ऐसा राज जिसमें अपनी मिट्टी, संस्कृति, परंपरा, विचार और सामाजिक मर्यादाओं का पालन करने वाला शासन व्यवस्था देश को चाहिए । यह वही काल था जिसमें 1885 में कांग्रेस का जन्म हो रहा था । स्वामी जी ने कांग्रेस के स्वशासन की मांग में स्वराज और स्वशासन में अंतर बताया | कांग्रेसी लोगों के स्वशासन का मतलब था डोमिनियन स्टेट का गठन जिसमें ऑब्जेक्ट था विदेशी लोगों की सरकार तथा सब्जेक्ट था देशी लोगों से सरकार का गठन | लोकमान्य तिलक ने कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है का प्रस्ताव रखा। तिलक की मृत्यु के बाद महात्मा गांधी ने कांग्रेस अधिवेशन में इसका प्रस्ताव रखा ।

संविधान सभा ने स्वशासन को ही स्वराज मान लिया । मतलब डोमिनियन स्टेट या ट्रांसफर आफ पावर | स्वराज पर उसका मानना है कि अच्छा है, अभी वक्त नहीं है। इसका संविधान सभा के शब्दों में गांधीजी की बकरी (ग्राम स्वराज के लिये इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है) पर बाद में सरकार विचार करेगी। आजाद भारत में 10 वर्ष सरकार चला लेने के बाद 1957 में संसदीय चुनाव के समय ग्राम स्वराज के स्वरूप पर चर्चा करने के लिए चाचा नेहरू ने एक कमेटी का गठन किया लेकिन नई सरकार में इसकी सिफारिश को लागू नहीं किया गया। इसके सीधे 20 साल बाद मोरारजी भाई की सरकार ने स्थानीय निकायों का चुनाव कराया तथा इसकी बेहतरी की लिए नई कमेटी का गठन किया। इंदिरा गांधी कभी भी स्थानीय निकायों को अधिकार देने के पक्ष में नहीं रही | राजीव गांधी की सरकार ने चुनावी वर्ष में एक विधेयक संसद में रखा जो पारित नहीं हो सका । चुनावी काल में नरसिम्हा राव की सरकार ने संविधान का 73 वा संशोधन किया जो कथ्य का प्रतिपाद्य है। ग्राम सरकार को संसद द्वारा पारित विधेयक में नुमाइशी बनाकर पूर्व से चले आ रहे कमिश्नर राज को ही जारी रखा गया है। संसद, विधानसभा, नगरनिगम, नगरपालिका की तरह ग्राम सभा के सदस्य निर्वाचित नहीं होते हैं। ग्राम सभा का कोई स्वरूप, ताकत अथवा महत्व नहीं है। किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने में यह सभा सक्षम नहीं है। पंचायत के संपूर्ण बालिग इसके स्वतः सदस्य होते हैं। शक्ति और कार्य सौंपने का अधिकार विधान मंडलों की इच्छा के अधीन है । निर्वाचित ग्राम सभा का गठन होगा तो होर्डर, स्मगलर और ब्लैक मार्केटियर्स के बदले राजनीतिक दलों को सुलझे हुए कार्यकर्ता मिलेंगे ।

अटका कहां स्वराज, बोल दिल्ली: तू क्या कहती है?

तू रानी बन गई, वेदना जनता क्यों सहती है? सबके भाग्य दबा रखे हैं, किसने अपने कर में? उतरी थी जो विभा, हुई बंदनी बता किस घर में?

उपरोक्त विषय के परिप्रेक्ष्य में कल बडोनी मार्केट, गली नंबर 29, अमित ग्राम, गुमानीवाला, ऋषिकेश 14-जनवरी-2024, समय : 3.00 बजे से परिचर्चा का आयोजन किया गया है आप सभी अवश्य शामिल हों।

Zoom link:

https://us06web.zoom.us/j/9205113578?pwd=7wxpLCVrRE4t0ps7fP0AI0mE6wqUz3.1

आयोजक: मार्गदर्शक सामाजिक शोध संस्थान

संवाद : 9627484171, 9431683723.

Devbhumi jknews

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