उत्तराखंड

*वर्ष 2013 में केदारनाथ में घटित घटना से सावधान रहने की जरूरत*

देव भूमि जे के न्यूज 12/02/2024-जलवायु परिवर्तन के कारण जहाँ एक ओर आज उच्च हिमालयी क्षेत्र में वर्तमान में पूर्व में बर्फवारी के स्थान पर वर्षा होने लगी है, वही दूसरी ओर बढ़ रहे तापमान के कारण हिमनद के गलने की दर में वृद्धि होने के साथ ही हिमनद तेजी से पीछे होते जा रहे हैं। ग्लेशियरों द्वारा खाली किये गये स्थानों पर हिमनदों द्वारा लाये गये मलबे के बांध या मोरेन के कारण बने कुछ जलाशयों का आकार वर्षा व हिमनदों के गलने के कारण तेजी से बढ़ रहा है। एक सीमा के बाद बढ़ रहे पानी का दबाव मलवे के बांध को तोड़ कर नीचे बसे इलाकों में बाढ़ का कारण बन सकता है। वर्ष 2013 में केदारनाथ में घटित घटना इसी का एक उदाहरण है। हालांकि वर्ष 2021 में धोलीगंगा वाली बाढ़ ग्लेशियर झील के कारण नहीं आई किन्तु, वह घटना भी उच्च हिमालयी क्षेत्र में आये हिम-स्खलन के कारण घटित हुयी थी। अभी हाल में 04 अक्टूबर, 2023 को सिक्किम राज्य के साऊथ लोहनक झील के टूटने से तिस्ता नदीं में काफी नुकसान हुआ था।

इस प्रकार की घटनाओं की पुर्नावृत्ति रोकने तथा घटित होने की स्थिति में प्रभावित हो सकने वाले जन समुदाय को समय से चेतावनी जारी किये जाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण, भारत सरकार द्वारा एक समिति (सी.ओ. डी०आर.आर.) का गठन किया गया है, जिसके द्वारा उत्तराखण्ड राज्य में जोखिम सम्भावित 13 ग्लेशियर झीलों को चिह्नित किया गया है।

सचिव, आपदा प्रबन्धन एवं पुनर्वास विभाग, उत्तराखण्ड शासन / यू०एस०डी०एम०ए० द्वारा इसके सम्बन्ध में दिनांक 12.02.2024 को सम्बन्धित संस्थानों के साथ समीक्षा हेतु एक महत्वपूर्ण बैठक ली गयी, जिसमें यू०एस०डी०एम०ए०, वाडिया, आई०आई०आर०एस०, आई०आर०आई० आई०आई०टी०, रुड़की, सिंचाई विभाग, सी०-डेक, जे०पी० पॉवर लिमिटेड, टी०एच०डी०सी०, एन०आई०एच, रुड़की, यू०एल०एम०एम०सी०, एन०टी०पी०सी०, एस० जे०वी०एन०, एन०डी०आर०एफ०, आई०टी०बी०पी० के साथ-साथ ऑन लाईन माध्यम से एन०डी०एम०ए०, डी०जी०आर०ई०, आई०आई०टी०एम०, पुणे, एन०सी०एम०आर०डब्लू०एफ०, जी०एस०आई०, एन०आर०एस०सी०, आई०एम०डी० तथा राज्य के समस्त डी०डी०एम०ओ० जुड़े। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान द्वारा दिये गये प्रस्तुतीकरण में जानकारी दी गयी कि गंगोत्री ग्लेशियर की निगरानी की जा रही है, जिसमें उन्होंने यह दृष्टिगोचर हुआ है कि गंगोत्री ग्लेशियर के साथ बहुत सारी ग्लेशियर झीले हैं, हैं जो कि अत्यधि जोखिम के अन्तर्गत आती हैं। इसी प्रकार बसुधारा ताल के सम्बन्ध में वाडिया द्वारा बताया गया कि इस ग्लेशियर में भी जोखिम अत्यधिक है, जिसकी निरन्तर निगरानी के लिये उपकरणों को लगाया जाना आवश्यक है।

इसी प्रकार आई०आई०आर०एस० द्वारा बताया गया कि उनके द्वारा भागीरथी, मन्दाकिनी, अलकनन्दा नदियों के निकट ग्लेश्यिर झीलों की निगरानी की जा रही है, जिसमें पाया गया कि केदारताल, भिलंगना व गोरीगंगा ग्लेशियर का क्षेत्र निरन्तर विस्तृत होता जा रहा है, जो कि आने वाले समय में आपदा के जोखिम के प्रति संवेदनशील है। ग्लेशियर झीलों के अध्ययन में कार्यरत संस्था सी०डेक द्वारा बताया गया कि उनके द्वारा सिक्किम राज्य के 03 प्रभावित ग्लेशियर झीलों का अध्ययन करने के लिये स्वयं निर्मित अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया गया तथा झीलों की गहराई नापने हेतु बेथिमेट्री सर्वे किया गया जिससे प्राप्त आंकडों की सहायता से झीलों में हो रहे परिवर्तन पर निरन्तर निगरानी रखी जा रही है। सचिव, आपदा प्रबन्धन द्वारा निर्णय लिया गया कि ग्लेशियरों की निगरानी हेतु एक मल्टी डिसीपिलिनरी टीम गठित की जाये तथा जिसमें यू०एस०डी०एम०ए० के द्वारा नोडल विभाग के रूप में कार्य किया जायेगा, जो अध्ययन करेगी एवं तत्पश्चात रिपोर्ट भारत सरकार को भी भेजी जायेगी एवं मार्ग दर्शन प्राप्त करते हुये ग्लेशियर लेक से उत्पन्न होने वाली आपदाओं का प्रभावी नियंत्रण के लिए कार्य किया जायेगा।

Devbhumi jknews

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