धर्म-कर्म

*ऋषिकेश-साकेतवासी परम पूज्य स्वामी बालयोगी प्रेमवर्णी जी महाराज की प्रथम वार्षिक पुण्यतिथि समारोह सौहार्द पूर्वक मनाई गई*

देव भूमि जे के न्यूज ऋषिकेश,28 फरवरी 2024, दिन बुधवार-

पूज्य श्री बालयोगी प्रेमवर्णी आश्रम, जौंक के संस्थापक परम पूज्य स्वामी बालयोगी प्रेमवर्णी जी महाराज का प्रथम वार्षिक पुण्यतिथि समारोह दिनांक 28 फरवरी 2024 ई. दिन बुधवार को सौहार्द पूर्वक मनाई गई।

इस अवसर पर मूर्तिअनावरण एंव मूर्ति महाभिषेक,शान्ति पाठ, हवन ,महायज्ञ,संत सम्मेलन एवं विशाल भण्डारे का आयोजन किया गया।

श्रद्धांजलि समारोह की अध्यक्षता व्योवृद्ध संत महामंडलेश्वर असंगानंद जी महाराज परमाध्यक्ष परमार्थ निकेतन के द्वारा किया गया।
स्वामी जी की परम शिष्या एवं उनकी सुपुत्री दिव्यावर्णी व मुकेश जी की उपस्थिति में कार्यक्रम संपन्न हुआ।

इस अवसर पर उपस्थित महामंडलेश्वरों संतों ,महंतो ने स्वामी जी के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला, वक्ताओं का कहना था की स्वामी जी का योग और साधना में कोई सानी नहीं थी योगीराज प्रेम वर्णी जी की प्रथम पुण्य तिथि पर हम उन्हें हृदय की गहराइयों से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। स्वामी जी का शरीर के लौकिक और पर परमार्थिक शरीर का दर्शन करने का सौभाग्य हमें कई बार मिला, आज उनकी मूर्ति में उनकी दिव्यता और साधना हमें दिख रही है। स्वामी जी ने बचपन से ही दिव्या बरनी को आध्यात्मिक सनातनी वैदिक और योग की शिक्षा देकर एक संस्कारी शिष्या के रूप में उन्हें स्थापित किया। स्वामी जी हमेशा लोक कल्याण के लिए लालायित रहते थे उनके विषय में ज्यादा बात करना सूरज को दीपक दिखाने के समान है। शुरू से ही उनके आध्यात्मिक, सामाजिक और सनातन के विषय में देश-विदेश के लोगों ने लोहा माना। स्वामी जी ने कई देशों की यात्रा भी की। योग के विभिन्न दर्शन क्लेशों से मुक्त होने तथा चित्त को समाहित करने के लिए योग के आठ साधनों का अभ्यास उन्होंने योग दर्शन में आवश्यक बताया है। ये हैं यम, नियम,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ।

स्वामी जी कई कई घंटे तक समाधि में लीन रहते थे, उनका कहना था कि योग दर्शन ईश्वर के साथ ईश मिलन को प्राप्त करने के लिए नैतिक दिशानिर्देश, नैतिक कोड, सांस लेने की तकनीक और आंतरिक अभ्यास सिखाता है।

कार्यक्रम अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी असंगानंद जी महाराज ने अंत में लोगों को संतो को योगऋषि प्रेमवर्णी जी महाराज के विषय में विस्तार से बताया कि हमारा उनके साथ गहरा नाता था और अध्यात्म योग पर कई बार उनसे विस्तृत चर्चा होती थी वह हमारे बीच नहीं है पर वे हमारे दिल में सदैव जीवित रहेंगे।

इस अवसर पर स्वामी जी की परम शिष्या एवं पुत्री दिव्या वर्णी ,मुकेश जी, स्वामी राघवेंद्नंरानंद जी महाराज, स्वामी विष्णु दासजी महाराज, धर्मानंद जी महाराज, स्वामी सर्वात्मा नंद जी महाराज, उमेश योगी, सीताराम बाबा, कथा व्यास आचार्य पुरुषोत्तम जी महाराज, स्वरूपानंद जी ,संतोष योगी जी ,महंत बलवीर दास जी महाराज, बालकृष्ण जोशी, विनीत कुमार, इंद्र प्रकाश अग्रवाल, स्वामी आत्मानंद जी महाराज, महंत मनोज प्रपन्ना जी, नवदीप नागलिया, प्रदीप जैन, संतोष पुरी, दिनेश अग्रवाल, माधव अग्रवाल, मुकेश कुमार सहित अनेकों लोग उपस्थित थे।

परम् पूज्य स्वामी प्रेम वर्णी जी महाराज की जीवंत मूर्ति।

आपको बता दें कि स्वामी बालयोगी प्रेमवर्णी जी का जन्म 1933 में उत्तर भारत में गंगा और जमुना की पवित्र नदियों के बीच एक गाँव में हुआ था। जीवन के आरंभ में उनकी योग विज्ञान और दर्शन में गहरी रुचि विकसित हुई और 10 साल की उम्र में उन्होंने अपने परिवार को छोड़ दिया और चित्रकूट की पहाड़ियों और जंगलों में रहने चले गए।उन्होंने हिमालय की तलहटी में ऋषिकेश की घाटी की यात्रा की जहां उन्होंने 3 वर्षों तक परमार्थ निकेतन के स्वामी शुकदेवानंद सरस्वती के प्रत्यक्ष आध्यात्मिक मार्गदर्शन में अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने कर्म योग के रूप में अपने गुरु की सेवा की और आसन अभ्यास में महारत हासिल करना शुरू कर दिया। उन्होंने शिवानंद आश्रम के स्वामी शिवानंद और योग निकेतन के स्वामी योगेश्वरानंद सरस्वती के साथ भी अध्ययन किया। उन्होंने उन्हें अपनी औपचारिक शिक्षा जारी रखने की सलाह दी। बाद में उन्होंने कॉलेज के कई साल पूरे किये। इसके बाद उन्होंने मणिकूट पहाड़ियों के जंगल की गुफाओं में और गोमुख, गंगरोत्री और उत्तरकाशी के ऊपरी हिमालयी क्षेत्रों में गंगा के तट पर रहकर गहन साधना व आध्यात्मिक अभ्यास की।

बेहद कम समय में उन्होंने 500 योग आसन, 100 प्राणायाम और कुंडलिनी योग से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण क्रियाओं, बंधों और मुद्राओं में महारत हासिल कर ली। राज योग और ज्ञान योग के अभ्यास के माध्यम से उन्होंने अस्तित्व और चेतना के कई स्तरों की गहरी और गहन अनुभूति प्राप्त की।उनके आंतरिक अनुभव ने रहस्यमय रूप से प्रेरित कविता को जन्म दिया जो देवत्व के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है। उनकी कविताएँ इस समय तक केवल हिन्दी में ही प्रकाशित हुई हैं। उनकी कविताओं की मात्रा, संगम (संगम) नामक एक त्रयी और हृदयंगम (हृदय में स्थापित) नामक पुस्तक की आध्यात्मिक नेताओं और साहित्यिक गुरुओं द्वारा पूरे भारत में व्यापक रूप से प्रशंसा की गई है। उन्होंने उनकी कविताओं में व्यक्त गूढ़ गुण और उच्च रहस्यवाद की प्रशंसा की है।

1960 में स्वामीजी ने ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम में गंगा के किनारे एक सुंदर और एकांत जंगल क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय योगांत अकादमी की स्थापना की। तब से वह दुनिया के सभी हिस्सों के आध्यात्मिक जिज्ञासुओं में अतिचेतना जागृत करने और योग के सभी पहलुओं को सिखाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं। उनकी तकनीकें हठ योग और ईसीओ थेरेपी के माध्यम से शरीर को संतुलित करने, पवित्र ग्रंथों के अध्ययन और ध्यान के माध्यम से मन को स्पष्ट करने और भक्ति प्रथाओं के माध्यम से दिल को शुद्ध करने के महत्व पर जोर देती हैं। इन तरीकों से व्यक्ति इंद्रियों का सच्चा आनंद, मानसिक शांति की प्राप्ति और आत्म के परमानंद की प्राप्ति का अनुभव कर सकता है।

स्वामीजी को उनके छात्रों और भक्तों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आने और पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया था। उन्होंने पूरे यूरोप, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया में यात्रा की और कक्षाएं और दर्शन दिए।

1976 में उन्हें विजिटिंग योग प्रोफेसर के रूप में यूरोप में आमंत्रित किया गया था। वह ब्रुसेल्स में स्वामी धर्मानंदजी, फ्रांस में स्वामी हमसानंदजी और एम्स्टर्डम में माइकल हेगलर की संगति में थे ।

1980 में वह योग प्रोफेसर के रूप में पढ़ाने के लिए अमेरिका पहुंचे: कैलिफोर्निया में एलेक्स पप्पस, गंगा व्हाइट और सूफी मास्टर जो मिलर के साथ, वर्मोंट में डॉ. रॉबर्ट थुरमन (उमा थुरमन के पिता) के साथ एमहर्स्ट कॉलेज में, न्यूयॉर्क में हिल्डा चार्लटन और मुक्तानंद के साथ।

अपने पूरे जीवन में स्वामीजी को कई अद्भुत मित्रों की घनिष्ठ संगति का आशीर्वाद आध्यात्मिक सानिध्य का सम्मान मिला , जिनमें परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी असंगानंद सरस्वती महामंडलेश्वरजी, स्वामी चिदानंद महाराज जी, बी के एस अयंगर, राम दास, हरीश जौहरी, महर्षि महेश योगी , स्वामी सच्चिदानंद जी, बाबा मुक्तानंद, स्वामी राम, माता हिल्डा चार्लटन, रिक रमण दास, कृष्ण दत्त, वैदिक ऋषि, योगी अमृत देसाई और वेद भारती जी प्रमुख रूप से थे।
एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में स्वामीजी का संदेश प्रेरणा, अनुभव और अभिन्न योग की प्रक्रिया पर भरोसा करने के लिए काफी हैं। आज उनका शरीर हमारे बीच नहीं हैं परन्तु उनके द्वारा योग व प्राणायाम, साधना की शिक्षा हमें उनकी सदैव याद दिलाती रहेगी।

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