*दिल्ली में मौत का घर बना शेल्टर होम*
(-मनोज कुमार अग्रवाल)
देश की राजधानी में विकलांग सिस्टम और परस्पर आरोप लगा कर पल्ला झाड़ लेने वाली राजनीति ने मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के आश्रय के लिए बनाए गए शेल्टर होम को मौत का घर बना दिया। यह न सिर्फ शर्मनाक है बल्कि दिल दहलाने वाली ऐसी क्रूरता का भी उदाहरण है जिसने एक महीने में 14 बच्चों की जान ले ली है। वहीं इस साल में कुल मौतों की बात करें तो ये संख्या 27 है। चौंकाने वाली बात यह है कि अभी तक इसका कोई नोटिस नहीं लिया गया था। इस शेल्टर होम की अंदर की स्थिति बेहद खराब है।इतना ही नहीं, बच्चों को सिर्फ आधा ही खाना दिया जाता है।आलम यह है कि मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए बनाया गया आशा किरण होम अब उनके लिए डेथ चैंबर बन रहा है। उपराज्यपाल वी.के सक्सेना ने इन मौतों को सबसे वंचित लोगों के खिलाफ़ अपराध करार दिया है तो विपक्षी दलों भाजपा और कांग्रेस ने सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया और आश्रय गृह के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया। आतिशी ने मौतों की मजिस्ट्रेट जांच की घोषणा की, जिसके बाद उपराज्यपाल सक्सेना ने मुख्य सचिव नरेश कुमार को आशा किरण में हुई मौतों सहित शहर द्वारा संचालित सभी आश्रय गृहों की स्थिति की व्यापक जांच करने का निर्देश दिये और एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट मांगी है। यहां काम करने वाली महिला का कहना है कि जो सुविधा 4 साल पहले बच्चों को दी जाती थी, वो अब नहीं मिलती। पहले बच्चों को दूध, अंडा सब मिलता था, लेकिन अब सब बंद कर दिया गया है और सिर्फ दाल रोटी मिलती है।इतना ही नहीं, करीब दो दर्जन बच्चों को टीबी की बीमारी बताई गई है।इसके पीछे का कारण बच्चों को सही डाइट न मिलना और अधिक संख्या में लोगों को इसमें भर देना है। एसडीएम ऑफिस के सूत्रों के मुताबिक शेल्टर होम की क्षमता लगभग 500 है, लेकिन अंदर लगभग 950 लोग हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि जिस दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी के रूप में जाना और पहचाना जाता है, वहां कहीं ना कहीं पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर चरमराता नजर आ रहा है,जो जानकारी मिल रही है उससे पता चलता है कि बच्चों को ठीक से खाना नहीं दिया जा रहा था,बीमार हो जाते हैं तो इलाज नहीं दिया जाता। ऐसे में एक महीने में 14 मौत हो जाना सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है।आशा किरण में मौत के मामले में दिल्ली की मंत्री आतिशी ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं। सबसे चौंकाने वाली बात ये कि जुलाई महीने में ही एक महीने के अंदर 14 मौतें हुई है।
जब पत्रकारों ने मंत्री आतिशी से पूछा कि क्या ये मौतें सरकार के संज्ञान में नहीं आईं, क्योंकि विभाग का कोई मुखिया नहीं है? इस पर राजस्व मंत्री आतिशी ने कहा कि गंभीर रूप से विकलांग व्यक्तियों में सीरियस फिजिकल मॉर्बिडटी भी होती हैं। उन्होंने कहा कि आशा किरण शेल्टर होम में रहने वालों को न केवल गृह चिकित्सा केंद्र में बल्कि दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में भी निरंतर चिकित्सा देखभाल दी जाती है। हमने तुरंत मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं।संबंधित विभाग के अधिकारी ऐसी जांच में शामिल नहीं हैं । मजिस्ट्रेट रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई की जाएगी। भाजपा भी इसे लेकर दिल्ली सरकार पर हमलावर है। विपक्षी दल का आरोप है कि ये शेल्टर होम्स की खराब रहने की स्थिति और और वहां रहने वाले बच्चों की गंभीर उपेक्षा के कारण हुआ है।दिल्ली भाजपा की एक टीम भी स्थिति का जायजा लेने के लिए आशा किरण शेल्टर होम पहुंची थी। पार्टी के महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष रेखा गुप्ता ने खाने में फंगस के साथ ये तस्वीरें शेयर की हैं उनका कहाना है कि मेनू में विभिन्न आइटम हैं लेकिन कुछ भी उपलब्ध नहीं है,शेल्टर होम में रहने वाले लोगों का बीएमआई कम है, सेंटर में गर्मी से मौतों में उछाल आया है और यहां कूलर भी नहीं है,बासी खाना परोसा जा रहा है।रेखा शर्मा ने कहा कि इतने दिनों से यह संस्था चल रही है, इसके कार्यों की ऑडिट कराई जानी चाहिए और इसके लिए समीक्षा की भी जरूरत है।उन्होंने कहा कि अगर, इसके बाद जरूरत हो तो इस संस्था को बंद करवाना भी जरूरी है, क्योंकि जो लोग वहां हैं, उन्हें हॉस्पिटल में होना चाहिए न कि शेल्टर होम में।उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि मानसिक रोगियों के लिए शेल्टर होम होते हैं, बल्कि उन्हें अस्पतालों में होना चाहिए।
आश्रय गृह में चिकित्सा देखभाल इकाई के प्रभारी की रिपोर्ट में फरवरी में तीन मौतें, मार्च और अप्रैल में दो-दो, मई में एक, जून में तीन और जुलाई महीने में 14 मौतें दर्ज की गई हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि 12 जुलाई से 28 जुलाई के बीच 12 मौतें हुईं। 15 जुलाई के बाद से मौतों के रिकॉर्ड से पता चला है कि कई मृतक “गंभीर” या “गहन” बौद्धिक विकलांगता से पीड़ित थे और अन्य सरकारी अस्पतालों में भी उनका इलाज चल रहा था। 20 जुलाई को दो महिलाओं सहित तीन लोगों की मौत हो गई।
आश्रय गृह के मुख्य चिकित्सा अधिकारी अशोक कुमार के अनुसार यहां रहने वाले लोगों को गर्मियों के दौरान उचित पीने का पानी नहीं मिल रहा था और ऐसी संभावना है कि पानी दूषित हो सकता है।उन्होंने कहा, कि”उन्हें दस्त हो रहे थे। यहां रहने वाले लोगों को अंडे और दूध दिया जाना चाहिए, लेकिन इसे विशेष आहार माना जाता है। आश्रय गृह का प्रशासक एक या दो बार आता है। कुमार ने कहा कि 60 से 70 प्रतिशत लोग दवाइयां ले रहे हैं, लेकिन कुपोषण का इलाज दवाओं से नहीं किया जा सकता है।
पुलिस उपायुक्त (रोहिणी) गुरइकबाल सिंह सिद्धू ने बताया कि पुलिस ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 196 के तहत जांच शुरू कर दी है। अधिकारी ने आगे कहा कि केंद्र का प्रशासक ही बता सकता है कि अंदर कितने लोग रह रहे हैं, लेकिन पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। डीसीपी ने कहा, “हम पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं । रिपोर्ट के अनुसार आगे की जांच और एफआईआर दर्ज की जाएगी।
दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित इस शेल्टर होम की स्थापना 1989 में रोहिणी के सेक्टर 1 में की गई इसके अंदर 350 लोगों को रखने की क्षमता है।आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद और दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की पूर्व प्रमुख स्वाति मालीवाल ने इस सुविधा को “हॉरर होम” बताया।उन्होंने कहा, “जिन लोगों को विशेष देखभाल की आवश्यकता है, उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जा रहा है! यह एक हॉरर होम है! 14 लोग मारे गए, जिनमें से 8 महिलाएं थीं। दो मृतक महिलाओं की केस फाइलों में स्पष्ट रूप से लिखा है कि वे कुपोषित थीं। मेडिकल रिपोर्ट में निर्जलीकरण, उल्टी और घाव का भी उल्लेख किया गया है।
आशा किरण शेल्टर होम दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आती है। आप विधायक राज कुमार आनंद समाज कल्याण मंत्री थे। हालांकि, 10 अप्रैल को मंत्री पद और आप से उनके इस्तीफे के बाद से इस विभाग के हेड का पद खाली है।तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किसी भी मंत्री को विभाग का जिम्मा नहीं सौंपा है।
साल 2015 में कैग ने अपनी रिपोर्ट में शेल्टर होम की फंक्शनिंग पर सवाल उठाए थे। रिपोर्ट के अनुसार 2009 से 2014 के बीच 148 मौतें हुई थीं। दिल्ली महिला आयोग की 2017 की रिपोर्ट में भी यहां की सुविधाओं पर चिंता जताई थी।
सवाल है कि अगर प्रशासन अभागे मानसिक कमजोर बच्चों को पर्याप्त सुविधा नहीं दे सकते थे तो आश्रय घर खोलने की क्या जरूरत थी? यह एक अंधी व्यवस्था और कुप्रबंधन की जीती जागती नजीर है ।राजनीति सिर्फ आरोप प्रत्यारोप के फेर में लगी है जबकि जरूरत सड़ गल रहे सिस्टम को बदलने की है। (विनायक फीचर्स)