*कथित अधिकार के नाम पर टूटता समाज!देव भूमि जे के न्यूज –
रुद्रशक्ति में एक ऋषि अपना मंतव्य इस प्रकार प्रकट करते हैं –
“चर्मकारेभ्यो: नमः रथकारेभ्यो:नम:कुलालेभ्यो:नम:”! अर्थात के चमार तुम्हें नमस्कार है! आप ऐसा जूता /चप्पल बनाते हो जिसे पहनकर मेरे पैरों की रक्षा होती है,इसलिये आप समाज के अभिन्न अंग हो पूजनीय हो वंदनीय हो।हे बढई तुम्हें नमस्कार है! तुम्हारे द्वारा बनाये हुए वस्तुओं से जीवन जीना कठिन से सुगम होते हैं। हे कुम्हार तुम्हें नमस्कार है आप ऐसा सुराही/घड़ा बनाते हो जिसका ठंडा पानी पीकर आत्मा तृप्त हो जाती है।आप श्रमजीवी हो, आप जनक हो ,आप समाज में रहने वाले प्रत्येक जीव के जीवन को जीने के लिए आवश्यक हो !आप परम वंदनीय हो, समाज को जीवन दान देते हो ।एक समाजशास्त्री ने समाज की परिभाषा में प्रत्येक समाज को जाल के समान कहा है। जिस प्रकार जाल में सभी धागे एक दूसरे से बंधे रहते हैं, जुड़े रहते हैं ,उसी प्रकार मनुष्य भी मनुष्य के साथ जुड़ा है, बंधा हुआ है। “यदि एक भी धागा खुल गया तो सारे धागे खुलने शुरू हो जाएंगे ।उसी प्रकार समाज एक जगह से टूटना शुरू हो जाता है, तो टूटता ही जाता है, बिखरता ही जाता है। और अंततः टकराव की स्थिति आ जाती है।
” मैं भी पता नहीं कहां उलझ गया,बहक गया, आपकी नजरों में ये बातें पुरानी विचारधारा की है।
हम 21वीं सदी में जी रहे हैं ।और ये यह सब पुराने जमाने की बातें है ।हमें इनसे क्या लेना देना , समय परिवर्तनशील है, समय के साथ-साथ ब्रह्मांड में सभी चर अचर प्राणियों में भी परिवर्तन होता है। प्राणियों में सबसे ऊपर नाम मनुष्यों का है, क्योंकि मनुष्य में सारे गुण मृत और सुसुप्त अवस्था में पाए जाते हैं। वह सोच सकता है,निर्णय ले सकता है ,अपने दिमाग के बल पर एक से एक वस्तुओं का निर्माण कर सकता है। उसका उपयोग करता है। और सबसे बड़ी बात है कि पशुओं की तुलना में हम मनुष्य बहुत ही आगे हैं। उनकी सोच सिर्फ अपने तक ही सीमित है ,और हमारी सोच की गति विस्तृत है, विशाल है ।हमारी सोच कहां से कहां पहुंची है?
“समाज में रहने वाले प्रत्येक जाति के लोग चाहे वो किसी भी धर्म -संप्रदाय के हों,हमसे अलग तो नहीं है”!हमारे देश के नेता एकता धर्म निरपेक्षता का नारा देते हैं उसके ऊपर लंबी चौड़ी भाषण देते हैं ।परंतु कई नेता देश के प्रत्येक व्यक्ति को अपना मोहरा बनाकर अलग अलग करने में तुले हुए हैं।
किस प्रकार से अपनी कुर्सी सुरक्षित रहे गणित लगाने में लगे रहते हैं। आए दिन समाज के प्रति उनका रवैया बदल जाता है इस देश की गुटबंदी हुई।
” अपने देश में ही राज्यों ने अपने अधिकार के नाम पर लड़ना भीड़ना शुरू किया। राज्य से अब हम जातिगत और क्षेत्रवाद तक पहुंच गए हैं। और अब वह दिन दूर नहीं जब परिवार से परिवार और व्यक्ति से व्यक्ति आपस में अपने कथित अधिकार व सत्ता के हिस्से के लिए मारकाट करना प्रारंभ कर देगें। आज नितांत आवश्यक हो गया है कि समय रहते सिर्फ अपना हित नहीं पूरे राष्ट्र की हित की बात करें। राष्ट्र जब खुशहाल रहेगा, तो हम सब खुशहाल रहेंगे ।हमें खुशहाल रहने के लिए अपने आप को बदलना होगा। सत्ता के दलालों के बहकावे में ना आकर हमें “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया “के रास्ते पर चलना होगा। मनुष्य -मनुष्य मिल कर जाति बनाते हैं। जाति-जाति मिलकर समाज और समाज से समूह और समूह (समाज)के मिलने पर राज्य और राज्यों के मिलने से देश का निर्माण होता है और देश की प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए इन सभी कड़ियों की महत्वपूर्ण भूमिका है ।यदि एक कड़ी टूटती है,तो हम टूट के कगार पर पहुंच कर देश अपना अस्तित्व खो देता है, नतीजा हम प्रगति की बजाये गुलामी के रास्ते पर चलने को मजबूर हो जाते हैं।
आज हम ऋषिकेश में क्षेत्रवाद और जातिवाद के नाम पर हो रहे राजनीति के विषय में बात करेंगे स्थानीय निकाय चुनाव का प्रचार प्रसार लगभग आज खत्म हो चुका है।
इस बीच हम चुनावी राजनीति में इस प्रकार अलग-थलग हो गए कि बरसों से रह रहे ऋषिकेश शहर में सोशल मीडिया के माध्यम से एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगना शुरू कर दिया है ऋषिकेश का इतिहास रहा है कि चाहे कोई भी समस्या हो उसका समाधान जाति वर्ग क्षेत्र से ऊपर उठकर सभी ने मिलजुल कर किया है। अभी तक इतिहास साक्षी है कि ऐसे परिदृश्य देखने सुनने को नहीं मिला चाहे लोकसभा का चुनाव हो, चाहे विधानसभा का चुनाव हो ,सभी ने एक मत होकर अपने प्रत्याशियों का चुनाव किया। परंतु ऋषिकेश नगर निगम स्थानीय निकाय चुनाव में किस प्रकार से समाज को ऋषिकेश को तोड़ने की बातें पढ़ने सुनने को मिल रही है जिसे सुनकर दुख होता है चुनाव तो आते जाते हैं सभी ने अनेकों नेताओं को चुनकर लोकसभा में, राज्यसभा में विधानसभा में और ऋषिकेश के विभिन्न पदों पर सुशोभित किया है।
हमारे उत्तराखंड के अनेकों नेताओं ने देश के विभिन्न भागों में अपना नेतृत्व कर चुनाव लड़कर उत्तराखंड का नाम रोशन किया किया है।
बात करते अपने उत्तराखंड के विभिन्न राजनेताओं की जिन्होंने भारतवर्ष में अपनी राजनीति की एक अलग छाप छोड़ी है और कुशल नेतृत्व कर उत्तराखंड का मान बढ़ाया है इन नेताओं ने जातिवाद क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर राष्ट्र की उन्नति के लिए नेतागिरी की है। उनमें सबसे पहले नाम आता है,हेमवती नंदन बहुगुणा का वे एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, एक राजनेता और कुशल प्रशासक थे।उनका जन्म 25 अप्रैल, 1919 को उतराखंड के पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र के बुघानी गांव में हुआ था।वे किशोरावस्था में ही स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हुए थे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों की प्रताड़ना झेलनी पड़ी।उत्तर प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शख्सियतों में से एक, बहुगुणा ने अपने सभी विधान सभा चुनाव तत्कालीन इलाहाबाद जिले की सीटों से लड़े थे।वे वर्ष 1973-75 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे।उनकी ही बेटी रीता बहुगुणा जोशी 1995 से 2000 तक इलाहाबाद की मेयर रहीं। वह राष्ट्रीय महिला परिषद की पूर्व उपाध्यक्ष हैं, 2003 से अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष हैं और सितंबर 2007 से उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रहते हुए 2017 में बीजेपी में शामिल हुई और योगी मंत्री मंडल में महिला कल्याण, परिवार कल्याण, मातृ एवं शिशु कल्याण, पर्यटन मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री रहीं।
पौड़ी जिले में जन्मे उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जिले से 5 बार सांसद रह चुके हैं और वर्तमान में मुख्यमंत्री है जिनका डंका भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में बज रहा है। उनकी सूझबूझ से उत्तर प्रदेश लगातार तरक्की के पथ पर अग्रसर है। वह केवल उत्तराखंड ही नहीं अपितु पूरे भारतवर्ष के लिए सोचते हैं और आने वाले भारत के प्रधानमंत्री अभी से लोगों ने घोषित कर दिया है। उनकी सोच सदैव “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।” की रही है।
इस प्रकार के दर्जनों उदाहरण है कि उत्तराखंड के हमारे जननायकों ने किस प्रकार पूरे देश में अपनी विचारधारा से अपने नेतृत्व से लोगों का सेवा किया है।
बात करते हैं उत्तराखंड में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की जिन्होंने इलाहाबाद के यूनिवर्सिटी में शिक्षा ग्रहण किया वहीं से छात्र जीवन से ही राजनीति की शुरुआत की थी जो की सर्वविदित है।
ऋषिकेश में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी शंभू पासवान ,कांग्रेस के प्रत्याशी दीपक प्रताप जाटव ,निर्दलीय दिनेश चंद्र मास्टर जी एवं उत्तराखंड क्रांति दल से महेंद्र सिंह चुनाव मैदान में खड़े हैं। सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार का दौर चल रहा था। सौहार्दपूर्वक चुनाव चल रहा था पर कुछ तथाकथित पत्रकार कहे जाने वाले लोगों ने भ्रामक प्रचार प्रसार कर इस चुनाव में द्वेष की भावना पैदा किया जिससे आपसी सौहार्द आपसी भाईचारा धूमिल हुई है पहाड़ बनाम मैदान ,व्यापारियों और विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अलग-अलग करने की कोशिश की है। चुनाव में दिनेश चंद्र मास्टर जी नजदीकी फाइट में थे ,लेकिन अनाप-शनाप सोशल मीडिया पर बचकाना बयान देकर उनका ग्राफ नीचे करने का काम किया गया।
चूकि चुनाव 23 जनवरी को सामने है 2 दिन शेष रह गए हैं परंतु जो नहीं हुआ इस प्रकार की अफ़वाह फैलाकर जो बातें की गई निंदनीय है।
आज हम चांद पर पहुंच गए हैं व्यक्ति का जन्म स्थल कहीं और होता है कर्मस्थली कहीं और होता है जहां ईश्वर ने लिखा है वह अपने कर्मों से अपनी बातों से अपने व्यवहार से अपना जीवन जापान करता है।
ऋषिकेश का व्यापारी वर्ग आक्रोशित और आहत है, सोशल मीडिया पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए कुछ लोग बने बनाए काम को किस प्रकार खराब करते हैं इसका जीता जाता उदाहरण इस चुनाव में देखने को मिला है ।खैर वोटर अपना क्या निर्णय सुनाते हैं यह 25 तारीख को पता लगेगा लेकिन हमें चाहिए कि हम राष्ट्रवाद की बात करें राष्ट्र सर्वोपरि है ।एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के लिए हमें कार्य करना चाहिए हमारी कलम जब भी चले तो तोड़ने की नहीं जोड़ने की बात करें।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बंगाल की खाड़ी से लेकर दक्षिण भारत तक लगभग मैंने सभी जगह की यात्रा की है और पूरे देश में लोग अपना व्यापार ,कारोबार करके खुशहाल जीवन जी रहे हैं ।सभी सौहार्दपूर्वक रहते हैं और देश की तरक्की में योगदान करते हैं अंत में मेरा मंतव्य यही है की चुनाव आते जाते रहते हैं। परंतु आपसी संबंध खराब नहीं होने चाहिए।