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*निःशुल्क चिकित्सा शिविर और स्वास्थ्य जीवन के सूत्र व्याख्यान कार्यक्रम का हुआ आयोजन*

देव भूमि जे के न्यूज ऋषिकेश 09/01/2024-
आज मीरानगर में ओम ब्रह्म शान्ति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित निःशुल्क चिकित्सा शिविर और स्वास्थ्य जीवन के सूत्र व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसने १५० लोगो ने लाभ उठाया , इस चिकित्सा शिविर में होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ विनय कुरियाल आयुर्वेद चिकित्सक डॉ डी के श्रीवास्तव एवं डॉ लक्ष्मण सिंह राणा ने अपनी सेवाएँ दी ! मुख्य वक्ता अन्तर्राष्ट्रीयआयुर्वेद विशेषज्ञ एवं नवजीवनम आयुर्वेद संस्थान के प्रमुख चिकित्सक डॉ डी के श्रीवास्तव ने स्वास्थ्य एवं शतायु जीवन के लिए आयुर्वेद के त्रिसूत्र आहार निद्रा एवं ब्रह्मचर्य पे विशेष व्याखान दिया उन्होंने सभी से कहा कि सहज तथा स्वाभाविक जीवन जीयें जब व्यक्ति कई चेहरोंके साथ जीता है, जो नहीं है वह बननेका नाटक करता है, तो उसकी अपनी पहचान खो जाती है। अहंकार, मिथ्या आडम्बर, पाखण्डपूर्ण व्यवहार तथा ‘मेरी कलाबाजी कोई नहीं समझता’ की प्रवृत्तिके तप्त बालूमें उसकी सहजता, सरलता, सरसता तथा संवेदनशीलता पानीकी बूँदकी तरह खो जाती है। स्वाभाविक जीवन जीनेके लिये व्यक्तिको पद, प्रतिष्ठा, धन-दौलत, कुल-खानदान, जाति, विशिष्टता आदि मुखौटोंको फेंककर सहज होकर सीधे मनुष्यकी तरह जीना चाहिये। जैसी सहजता, संवदेनशीलता तथा समझदारी हम अपने प्रति दूसरोंसे अपेक्षा करते हैं, वैसा ही हमें दूसरोंके प्रति दिखानी चाहिये। जिस दृष्टिकोण तथा ढंगसे जीनेमें तनाव होता हो या दूसरोंका नुकसान होता हो, उसे बिलकुल बदल देना चाहिये। यही आध्यात्मिक विज्ञान तथा वैज्ञानिक अध्यात्म है। समयानुकूल लेकिन नैतिक मूल्योंको बरकरार रख, दो कदम आगे तथा एक कदम पीछेका सिद्धान्त सभीके लिये ग्राह्य होना चाहिये।डॉ डी के श्रीवास्तव ने आगे कहा कि आप सभी
संयमित जीवन जीयें – सम्यक्, सन्तुलित तथा संयमित जीवन जीनेके लिये अपनी बलवती इच्छा, बहकाती इन्द्रियाँ तथा कुदानेवाली महत्त्वाकांक्षापर लगाम लगाना होगा। ‘उसके पास है मेरे पास नहीं है।’ ‘मेरे पास है लेकिन कम है’ की प्रवृत्तिसे छुटकारा पाना होगा। प्रतिस्पर्धाके युगमें अपनी सीमाको पहचानकर उस घुड़दौड़ में शामिल होना चाहिये। भौतिक चीजोंसे ज्यादा लगाव होनेसे उन्हें पानेकी इच्छा तीव्र हो जाती है और उसे प्राप्त करनेके लिये व्यक्ति नैतिक तथा अनैतिक विचार भूल जाता है ।


हम जीवनकी ऊँचाइयोंको सम्यक् विचार, सम्यक् व्यवहार, परिष्कृत तथा सकारात्मक सोच एवं दृष्टिकोणसे ही छू सकते हैं।
एकान्तमें रहना सीखें- भीड़में व्यक्ति बहिर्मुखी होता है। दूसरोंकी गलतियोंको ज्यादा देखता है। एकान्तमें व्यक्ति अन्तर्मुखी होता है। आत्मनिरीक्षण, आत्मविश्लेषण तथा आत्ममूल्यांकन करता है। एकान्तमें व्यक्ति अपने अन्दर यात्रा करता है। यह एकान्त व्यक्तिका सही आइना है । शान्ति व्यक्तिके अन्दरसे आती है । शान्तिके लिये व्यक्तिको शरीर-भावमें नहीं, आत्मभावमें जीनेकी कला सीखनी होगी। अपने अन्दरके तहमें जाने तथा जीनेसे व्यक्तिका जीवन सम्यक् होता है, ‘आत्मन्येवात्मना तुष्टः ‘ की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिये । एकान्त ही सच्ची शान्तिकी गंगा है, जिसमें डुबकी लगाकर हम तनावोंसे मुक्त हो सकते हैं। एकान्तमें व्यक्तिके साथ केवल उसका स्व होता है, उसकी पहचान रहती है। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि सही शान्तिकी प्राप्तिके लिये व्यक्तिको कामना, स्पृहा, ममता, अहंकार तथा सारी लौकिक विशिष्टताओंसे मुक्त होना पड़ता है-
इस संसार वृक्षमें दो ही फल मीठे हैं- अच्छी किताबोंका अध्ययन तथा अच्छे लोगोंकी संगति | इसलिये हमें पढ़नेकी आदत डालनी चाहिये । पढ़ना उसीको कहते हैं, जिससे हम सोचनेके लिये प्रेरित हों। आयुर्वेद में लिखा है कि हमें बुद्धि बढ़ानेवाली तथा उच्च शिक्षा देनेवाली पुस्तकोंका अध्ययन करना चाहिये!
कार्यक्रम की शुरुआत ओम ब्रह्म शांति सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ डी सी श्रीवास्तव ,आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ डी के श्रीवास्तव ,होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ विनय कुड़ियाल एवं आयुर्वेद चिकित्सक डॉ लक्ष्मण राणा ने नीम करौली महाराज के चित्र पर दीप प्रज्वलित कर एवं माल्यार्पण कर किया !

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