स्वास्थ्य

चिकुन गुनिया के उपचार में लाभदायक है-आयुर्वेद व पंचकर्म.

देव भूमि जे के न्यूज –
(डाॅॅ. जी. एम. ममतानी,डाॅ. अंजू ममतानी-विभूति फीचर्स)

कोविड महामारी का कहर आज भी लोगों के मन-मस्तिष्क में बसा है। वर्षाऋतु के आगमन के साथ अनेक रोग मनुष्य को विचलित कर रहे हैं जैसे चिकुनगुनिया, डेंगू, वायरल फीवर, गैस्ट्रो इत्यादि। आज हर घर में कोई न कोई चिकुन गुनिया या डेंगू या वायरल बुखार से त्रस्त है ही। सभी के लिए यह चिंता का विषय है कि इससे कैसे बचा जाए या रोग होने पर उसका उपचार कैसे करें ?
चिकुनगुनिया मच्छरों के काटने से फैलने वाली वायरल बीमारी है। यह बीमारी बुखार, जोड़ों में दर्द और सूजन के साथ प्रकट होती है। चिकुनगुनिया वायरस एडिस एजिप्टी मच्छरों के काटने से मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है। यह मच्छर पहले से किसी संक्रमित व्यक्ति को काट चुके होते हैं। जब वह किसी दूसरे व्यक्ति स्वस्थ व्यक्ति को काटते हैं तो उसे भी चिकुनगुनिया हो जाता है। इस तरह बीमारी का फैलाव होता है। संक्रमित व्यक्ति सीधे दूसरे व्यक्ति को संक्रमण नहीं फैला सकता। एडिस एजिप्टी मच्छर दिन के समय काटते हैं। मच्छर काटने के 4 से 7 दिन के बीच इस बीमारी असर शुरू होता है। चिकुनगुनिया का इलाज लाक्षणिक चिकित्सा के रूप में होता हैं। इसलिए लोगों को इसे रोकने के लिए बचाव के उपायों का पालन करना चाहिए।
चिकुन गुनिया रुग्णों में तेज बुखार, जोड़ों में तीव्र पीड़ा, विशेषतः कलाई, घुटने व टखने की संधि में पीड़ा, जकड़ाहट, ठंड लगकर बुखार आना, शरीर का कांपना इत्यादि लक्षण प्रमुखतः पाए जाते हैं। रुग्ण खड़े रहने में असमर्थ व हाथ से ग्लास आदि वस्तु पकड़ने में असमर्थ हो जाता है। रीढ़ की हड्डी प्रभावित होने पर कमर में तीव्र पीड़ा के साथ ही भूख न लगना, सिर दर्द, उल्ट़ी, पूरे शरीर में दर्द इत्यादि लक्षण मिलते हैं। कुछ रुग्णों में त्वचा पर लाल या नीले रंग के चकते भी दिखाई देते हैं। ज्वर समाप्त होने के पश्चात भी जोड़ों का दर्द कायम रहता है। यह दर्द कुछ सप्ताह से महीने तक होता है। इस रोग में संधिवात के लक्षणों का तीव्र प्रकोप होने के कारण रोगी के पैर मुड़ जाते हैं। अतः इसे चिकुनगुनिया कहा जाता है। चिकुनगुनिया का मतलब है मुड़ जाना या टेढ़ा हो जाना।
*आयुर्वेदिक दृष्टिकोण*
आयुर्वेद में चिकुनगुनिया को वात दोष की विकृति माना जाता है, जो गति और संचार को नियंत्रित करता है। वायरस वात के संतुलन को बिगाड़ता है, जिससे जोड़ों में दर्द और सूजन होती है।
*आयुर्वेदिक उपचार*
1. जड़ी-बूटियाँ- हल्दी, अदरक, अश्वगंधा, गिलोय, चिरायता, रास्ना, आंवला, ज्येष्ठमध इत्यादि जड़ीबूटियों से लाभ होता है। इसके अलावा अन्य औषधियां चिकित्सक के मार्गदर्शन में लें।
2. पंचकर्म चिकित्सा- पंचकर्म के अंतर्गत स्नेहन, स्वेदन, पिंडस्वेद, पत्रपोट्टलीसेक, बस्तिकर्म इत्यादि करने से दर्द, सूजन, अकड़न व टेढ़ापन कम होता है। मांसपेशियों को आराम मिलता है। चिकुनगुनिया वायरस का विष जोड़ों इत्यादि में जमा होता है अतः उसे पंचकर्म द्वारा शरीर शुद्धि (डिटाक्स) कर बाहर निकाला जाता है।
3. आहार परिवर्तन- वात प्रकृति के विरुद्ध खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाएं। गर्म, पौष्टिक और पचाने में आसान पदार्थ सेवन करे। वात-प्रकृति के खाद्य पदार्थों से बचें ठंडे, सूखे और मसालेदार पदार्थ न लें।
4. जीवनशैली में बदलाव- योग और ध्यान जैसे हल्के व्यायाम करें। ध्यान, योग और गहरी साँस लेने के व्यायाम करने से तनाव कम होता हैं। आराम करें, पर्याप्त नींद लें।

5.इम्युनिटी बढ़ाएं-
चिकुनगुनिया वायरस हमारी इम्युनिटी (प्रतिरक्षा प्रणाली) को कमजोर बना सकता है। जब हमारी इम्युनिटी कमजोर होती है, तो हम चिकुनगुनिया जैसी बीमारियों के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं।
चिकुनगुनिया से लड़ने के लिए इम्युनिटी को मजबूत करने के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का सेवन जैसे अश्वगंधा, तुलसी और गिलोय इम्युनिटी को मजबूत बनाने में मदद करती हैं। इम्युनिटी बुस्टर काढ़ा इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दिया जाता है। इसके अति उत्तम रिज़ल्ट मिल रहे है। इससे वायरल रोग जैसे चिकुनगुनिया, डेंगू वायरल फीवर से बचाव होता है व रोग होने पर अन्य औषधियों के साथ देने से शीघ्र लाभ होता है।
चिकुनगुनिया और इम्युनिटी के बीच एक मजबूत संबंध है। हमारी इम्युनिटी को मजबूत बनाकर, हम चिकुनगुनिया जैसी बीमारियों से अपना बचाव कर सकते हैं। चिकुनगुनिया रोग के लिए कोई एंटिबायोटिक नहीं है। न ही कोई टीका उपलब्ध है। केवल पेन किलर दिया जाता है। जितनी सावधानी बरतेंगे, उतना सुरक्षित रहेंगे।

*ध्यान रखें*
चिकुनगुनिया से बचना हो तो सबसे पहले मच्छरों का प्रकोप रोकना जरूरी है। घर, आसपास का परिसर स्वच्छ रखना चाहिए। जल जमाव नहीं होने देना चाहिए। पूरे कपड़े पहनें। मच्छररोधक जालियां, मच्छरदानी लगाकर सोने से मच्छरों से बचा जा सकता है। मच्छर रोधक सामग्री का उपयोग करना चाहिए।

चिकुन गुनिया होने पर बुखार तो कम हो जाता है पर उसके कारण होने वाले जोड़ो के दर्द व कमजोरी से मरीज कई माह तक परेशान रहते हैं। ऐसे में आयुर्वेदिक औषधियां फायदा करती है। चिकुन गुनिया व अन्य वायरल फीवर होने पर शुरुआत से ही आयुर्वेदिक औषधि सेवन से शीघ्र लाभ होता है। इतना ही नहीं डेंगू रोग में प्लेटलेट्स कम होने पर रूग्ण परेशान रहते हैं पर आयुर्वेदिक औषधि से उन्हें चमत्कारिक लाभ मिलता है।(विभूति फीचर्स)

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