उत्तराखंडधर्म-कर्मराशिफल

आज आपका राशिफल एवं प्रेरक प्रसंग- कर्म और पुनर्जन्म क्या है?????


*आज का पञ्चांग*

*दिनांक:- 08/09/2024, रविवार*
*पंचमी, शुक्ल पक्ष,*
*भाद्रपद*
(समाप्ति काल)

तिथि———– पंचमी 19:57:44 तक
पक्ष———————— शुक्ल
नक्षत्र———- स्वाति 15:29:43
योग————– ऐन्द्र 24:03:35
करण————– बव 06:49:46
करण———– बालव 19:57:44
वार———————– रविवार
माह———————- भाद्रपद
चन्द्र राशि——————- तुला
सूर्य राशि——————- सिंह
रितु————————– शरद
आयन—————- दक्षिणायण
संवत्सर——————– क्रोधी
संवत्सर (उत्तर) ————–कालयुक्त
विक्रम संवत—————- 2081
गुजराती संवत————– 2080
शक संवत ————————1946
कलि संवत—————– 5125
सूर्योदय————- 06:02:33
सूर्यास्त—————- 18:30:29
दिन काल———— 12:27:55
रात्री काल————- 11:32:31
चंद्रोदय————– 10:20:39
चंद्रास्त—————- 21:16:23
लग्न—- सिंह 21°40′ , 141°40′
सूर्य नक्षत्र———- पूर्वा फाल्गुनी
चन्द्र नक्षत्र—————— स्वाति
नक्षत्र पाया—————— रजत

*🚩💮🚩 पद, चरण 🚩💮🚩*

रो—- स्वाति 08:47:18

ता—- स्वाति 15:29:43

ती—- विशाखा 22:10:41

तू—- विशाखा 28:50:01

*💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮*

ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
==========================
सूर्य= सिंह 21°05, पू oफाo 3 टी
चन्द्र= तुला 15°30 , स्वाति 3 रो
बुध =सिंह 04°53′ मघा 2 मी
शु क्र= कन्या 17°05, हस्त’ 3 ण
मंगल=मिथुन 07°30 ‘ आर्द्रा ‘ 1 कु
गुरु=वृषभ 25°30 मृगशिरा , 1 वे
शनि=कुम्भ 22°00 ‘ पू o भा o ,1 से
राहू=(व) मीन 13°25 उo भा o, 4 ञ
केतु= (व)कन्या 13°25 हस्त 2 ष

*🚩💮🚩 शुभा$शुभ मुहूर्त 💮🚩💮*

राहू काल 16:57 – 18:30 अशुभ
यम घंटा 12:17 – 13:50 अशुभ
गुली काल 15:24 – 16: 57अशुभ
अभिजित 11:52 – 12:41 शुभ
दूर मुहूर्त 16:51 – 17:41 अशुभ
वर्ज्यम 21:44 – 23:31 अशुभ
प्रदोष 18:30 – 20:51 शुभ

💮चोघडिया, दिन
उद्वेग 06:03 – 07:36 अशुभ
चर 07:36 – 09:10 शुभ
लाभ 09:10 – 10:43 शुभ
अमृत 10:43 – 12:17 शुभ
काल 12:17 – 13:50 अशुभ
शुभ 13:50 – 15:24 शुभ
रोग 15:24 – 16:57 अशुभ
उद्वेग 16:57 – 18:30 अशुभ

🚩चोघडिया, रात
शुभ 18:30 – 19:57 शुभ
अमृत 19:57 – 21:24 शुभ
चर 21:24 – 22:50 शुभ
रोग 22:50 – 24:17* अशुभ
काल 24:17* – 25:43* अशुभ
लाभ 25:43* – 27:10* शुभ
उद्वेग 27:10* – 28:36* अशुभ
शुभ 28:36* – 30:03* शुभ

💮होरा, दिन
सूर्य 06:03 – 07:05
शुक्र 07:05 – 08:07
बुध 08:07 – 09:10
चन्द्र 09:10 – 10:12
शनि 10:12 – 11:14
बृहस्पति 11:14 – 12:17
मंगल 12:17 – 13:19
सूर्य 13:19 – 14:21
शुक्र 14:21 – 15:24
बुध 15:24 – 16:26
चन्द्र 16:26 – 17:28
शनि 17:28 – 18:30

🚩होरा, रात
बृहस्पति 18:30 – 19:28
मंगल 19:28 – 20:26
सूर्य 20:26 – 21:24
शुक्र 21:24 – 22:21
बुध 22:21 – 23:19
चन्द्र 23:19 – 24:17
शनि 24:17* – 25:14
बृहस्पति 25:14* – 26:12
मंगल 26:12* – 27:10
सूर्य 27:10* – 28:08
शुक्र 28:08* – 29:05
बुध 29:05* – 30:03

*🚩 उदयलग्न प्रवेशकाल 🚩*

सिंह > 03:26 से 05:48 तक
कन्या > 05:48 से 07:58 तक
तुला > 07:58 से 10: 10 तक
वृश्चिक > 10:10 से 12:32 तक
धनु > 12:32 से 14:42 तक
मकर > 14:42 से 17:36 तक
कुम्भ > 17:36 से 18:02 तक
मीन > 18:02 से 19:34 तक
मेष > 19:34 से 20:58 तक
वृषभ > 20:58 से 23:06 तक
मिथुन > 13:06 से 01:18 तक
कर्क > 01:18 से 03:34 तक

*🚩विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार*

(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट

*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*💮दिशा शूल ज्ञान————-पश्चिम*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा चिरौजी खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*

*🚩 अग्नि वास ज्ञान -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*

5 + 1 + 1 = 7 ÷ 4 = 3 शेष
मृत्यु लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l

*🚩💮 ग्रह मुख आहुति ज्ञान 💮🚩*

सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है

बुध ग्रह मुखहुति

*💮 शिव वास एवं फल -:*

5 + 5 + 5 = 15 ÷ 7 = 1 शेष

कैलाश वास = शुभ कारक

*🚩भद्रा वास एवं फल -:*

*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*

*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*

*ऋषि पंचमी व्रत*

*💮🚩💮 शुभ विचार 💮🚩💮*

वरं न राज्यं न कुराजराज्यं
वरं न मित्रं न कुमित्रमित्रम् ।
वरं न शिष्यो न कुशिष्यशिष्यो
वरं न दारा न कुदारदाराः ।।
।। चा o नी o।।

एक बेकार राज्य का राजा होने से यह बेहतर है की व्यक्ति किसी राज्य का राजा ना हो.
एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो.
एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है की बिना शिष्य वाला हो.
एक बुरीं पत्नी होने से बेहतर है की बिना पत्नी वाला हो.

*🚩💮🚩 सुभाषितानि 🚩💮🚩*

गीता -: राजविद्याराज ह्य योग अo-09

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।,
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्‌ ॥,

मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है, परंतु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट (जैसे सूक्ष्म रूप से सब जगह व्यापक हुआ भी अग्नि साधनों द्वारा प्रकट करने से ही प्रत्यक्ष होता है, वैसे ही सब जगह स्थित हुआ भी परमेश्वर भक्ति से भजने वाले के ही अंतःकरण में प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होता है) हूँ॥,29॥,

*💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮*

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।

🐏मेष
मेहनत का फल पूरा-पूरा मिलेगा। यात्रा लाभदायक रहेगी। सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। मित्रों का सहयोग कर पाएंगे। बड़ा काम करने का मन बनेगा। पारिवारिक सहयोग मिलेगा। आय में वृद्धि होगी। भाग्य अनुकूल रहेगा। रुके कार्य पूरे होंगे। प्रसन्नता रहेगी। किसी प्रभावशाली व्यक्ति से परिचय होगा।

🐂वृष
विवाद को बढ़ावा न दें। किसी व्यक्ति के व्यवहार से स्वाभिमान को ठेस पहुंच सकती है। दु:खद समाचार मिल सकता है। बेकार बातों की तरफ ध्यान न दें। दौड़धूप अधिक होगी। नौकरी में मातहतों का सहयोग कम मिलेगा। कार्य की अधिकता रहेगी। जल्दबाजी न करें।

👫मिथुन
रचनात्मक कार्य पूर्ण व सफल रहेंगे। पार्टी व पिकनिक का आयोजन होगा। आय में वृद्धि होगी। परीक्षा व साक्षात्कार में सफलता प्राप्त होगी। व्यस्तता रहेगी। स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद प्राप्त होगा। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। घर-बाहर सभी ओर से सफलता तथा प्रसन्नता प्राप्त होगा।

🦀कर्क
स्थायी संपत्ति में वृद्धि हो सकती है। प्रॉपर्टी के कामकाज बड़ा लाभ दे सकते हैं। निवेश शुभ रहेगा। नौकरी में प्रशंसा मिलेगी। रोजगार मिलेगा। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। पार्टनरों से मतभेद दूर होंगे। जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें। स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है। लापरवाही न करें।

🐅सिंह
स्वास्थ्य का ध्यान रखें। उत्साह की अधिकता तथा व्यस्तता रहेगी। राजकीय बाधा दूर होगी। कारोबार ठीक चलेगा। महत्वपूर्ण निर्णय लेने में जल्दबाजी न करें। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। भाग्य अनुकूल है, लाभ लें। घर-बाहर सभी ओर से सहयोग प्राप्त होगा। प्रसन्नता रहेगी।

🙍‍♀️कन्या
योजना फलीभूत होगी। कार्यस्थल पर परिवर्तन संभव है। सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। मित्रों का सहयोग कर पाएंगे। निवेश शुभ रहेगा। नौकरी में कार्यभार तथा अधिकार दोनों बढ़ सकते हैं। बाहर जाने की योजना बनेगी। शत्रुओं का पराभव होगी। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी।

⚖️तुला
कानूनी अड़चन दूर होकर स्थिति मनोनुकूल रहेगी। कारोबार में वृद्धि के योग हैं। धन प्राप्ति सुगम होगी। नौकरी में चैन रहेगा। लंबे समय से रुके कार्यों में गति आएगी। धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने का अवसर मिल सकता है। सत्संग का लाभ मिलेगा। जल्दबाजी न करें। व्यवसाय ठीक चलेगा।

🦂वृश्चिक
बुरी खबर मिल सकती है, धैर्य रखें। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। काम करने की इच्छा नहीं होगी। विवाद से क्लेश संभव है। बनते कामों में बाधा उत्पन्न होगी। मेहनत अधिक और लाभ कम रहेगा। नौकरी में कार्यभार रहेगा। घर में तनाव रह सकता है। दूसरे लोग आपसे अधिक अपेक्षा करेंगे।

🏹धनु
डूबी हुई रकम प्राप्त हो सकती है, प्रयास करें। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। निवेशादि मनोनुकूल लाभ देंगे। नौकरी में प्रभाव बढ़ेगा। व्यापार में लाभ बढ़ेगा। किसी मांगलिक कार्य में भाग लेने का अवसर मिल सकता है। पारिवारिक सहयोग मिलेगा। घर-बाहर सुख-शांति बनी रहेगी।

🐊मकर
विवाद को बढ़ावा न दें। फालतू खर्च पर नियंत्रण रखें। कुसंगति से बचें। घर-परिवार की चिंता रहेगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। किसी व्यक्ति के उकसाने में न आएं। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। आय बनी रहेगी। व्यवसाय ठीक चलेगा।

🍯कुंभ
उत्साहवर्द्धक सूचना मिलेगी। भूले-बिसरे साथियों से मुलाकात होगी। फालतू खर्च होगा। बड़ा काम करने का मन बनेगा। कारोबार में लाभ होगा। शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड आदि मनोनुकूल लाभ देंगे। भाइयों का सहयोग मिलेगा। आत्मसम्मान बना रहेगा। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। लाभ होगा।

🐟मीन
चोट व रोग से बाधा संभव है। झंझटों में न पड़ें। दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं। यात्रा लाभदायक रहेगी। भेंट व उपहार की प्राप्ति होगी। कारोबार में वृद्धि होगी। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। समय अनुकूल है, लाभ लें। प्रमाद न करें। पार्टनरों का सहयोग मिलेगा। प्रसन्नता रहेगी।

*🚩आपका दिन मंगलमय हो🚩
कर्म और पुनर्जन्म क्या है?????

कितना निर्लिप्त रहता है कमल जल से ! पैदा होता है पानी में, बढ़ता-पनपता भी पानी में है, विकसित भी पानी में होता है, पानी में खिलता है, पानी में ही आठों पहर बसता है; परंतु पानी से सर्वथा अछूता, पानी को वह अपने ऊपर ठहरने ही नहीं देता, अपने से चिपकने नहीं देता, पानी आया तुरंत उसे लुढ़का कर फेंक देता है । इसी तरह कमल का आदर्श लेकर मनुष्य को संसार में कर्म करने चाहिए, तब वही कर्म उसके मोक्ष का द्वार खोल देंगे ।

मनुष्य के कर्म ही उसके पुनर्जन्म का आधार हैं । कर्मों का फल भोगने के लिए ही मनुष्य को बार-बार जन्म लेना पड़ता है । इस जन्म में किए हुए कर्मों से ही भविष्य में जन्म प्राप्त होता है । जिस प्रकार मक्खी लोभवश शहद पर टूट पड़ती है और उसका रस लेने के साथ-साथ वह उसमें ज्यादा लिपटती जाती हैं और अंत में मृत्यु को प्राप्त हो जाती है; उसी प्रकार मनुष्य भी इस कर्म-जंजाल में फंस कर मृत्यु को प्राप्त होता है और फिर कर्मफल के भोग के लिए पुनर्जन्म धारण करता है ।

‘पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्’ अर्थात् कर्मों में आसक्ति के कारण जीव संसार में बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु और बारंबार माता के गर्भ में रहने के दुष्चक्र में फंसता रहता है ।

कर्म ही विभिन्न योनियों में जन्म का आधार हैं!!!!!

प्रत्येक कर्म के साथ कोई कामना जुड़ी रहती है । जीवन भर में जो कामना सबसे ज्यादा प्रबल होती है, वही अंतकाल में मृत्यु के समय उभर आती है । उसी को स्मरण करते हुए जीव जब शरीर त्यागता है, तब उसी के अनुरुप पुन: दूसरी योनि में जन्म ग्रहण करता है ।

भगवान ऋषभदेव के पुत्र सम्राट भरत महान त्यागी, भगवद्भक्त व पृथ्वी के एकच्छत्र सम्राट थे । उनके नाम पर ही इस देश का नाम भारत वर्ष पड़ा । पहले इस देश का नाम अजनाभ वर्ष था । अंत समय में हिरन के बच्चे में आसक्ति के कारण उसी का स्मरण करने से उन्हें अगले जन्म में मृग होना पड़ा ।

प्रत्येक कर्म का जीव के चित्त पर एक चित्र सा बन जाता है । यही है चित्रगुप्त का लेखा जिसके आधार पर जीवन भर के हमारे शुभ-अशुभ कर्मों का लेखा-जोखा होता है । इसी के आधार पर मृत्यु-पर्यन्त जीव को उत्तम या अधम योनियां प्राप्त होती हैं ।

एक ही गलत कर्म से राजा इंद्रद्युम्न को हाथी (गजेंद्र) की योनि मिली, साक्षात इंद्र का पद प्राप्त होने पर भी नहुष को सर्प बनना पड़ा, मानव शरीर में जितने रोम हैं, उतनी गायों का दान करने वाले राजा नृग को गिरगिट बनना पड़ा ।

कर्म कैसे बंधन और पुनर्जन्म का कारण बन जाते हैं, यह इस कथा से स्पष्ट है—एक महात्मा का कोई सेठ भक्त था । महात्मा के पास एक लाख रुपये थे, जो उसने अपने भक्त सेठ के पास सुरक्षित रखवा दिए थे । एक बार आश्रम बनवाने के लिए जब महात्मा ने सेठ से रुपये वापिस मांगे तो सेठ की नीयत खराब हो गई और वह रूपये देने से मुकर गया ।

कुछ समय बाद महात्मा की मृत्यु हो गई । कहते हैं कि वही महात्मा सेठ के घर पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ और धीरे-धीरे उसने सेठ की सारी संपत्ति व्यसन और बीमारी में व्यय करा दी और फिर उसकी मृत्यु हो गई । ऐसा होता है कर्मों का फल । कहा गया है—‘चोरी का पैसा नाली में ही जाता है ।’

पुनर्जन्म से मुक्ति कैसे हो ?
प्रश्न यह है कि ऐसी स्थिति में मनुष्य क्या करे ? क्या इसी प्रकार विवश होकर कर्मबंधन के फल के रूप में संसार में आवागमन के चक्र में ही पड़ा रहे ?

इसका उत्तर है—नहीं ।

गीता में भगवान की आज्ञा है कि ‘तुम्हारा कर्म करने में ही अधिकार है फल में नहीं । अत: तुम कर्मफल की इच्छा करने वाले मत बनो और कर्मों को छोड़ देने का भी विचार मत करो । फल और आसक्ति को छोड़ कर सिद्धि-असिद्धि को समान समझ कर निरंतर मेरा स्मरण करते हुए मेरे लिए सब कर्म करते रहो ।’

भगवान के इन वाक्यों का भाव है कि मनुष्य हर स्थिति में अनासक्त रहे—

तेरे कांटों से भी प्यार,
तेरे फूलों से भी प्यार,
जो भी देना चाहे दे दे,
दुनिया के तारन-हार ।।

अनासक्ति का यह भाव ही उसे संसार में आवागमन के भीषण चक्र में पड़ने से बचायेगा । जिस तरह सूखे और गीले मिट्टी के गोलों को यदि दीवार पर फेंका जाए तो उनमें से गीला गोला ही दीवार पर चिपकता है सूखा नहीं; उसी तरह जो सकाम कर्म हैं, किसी कामना से किए जाते हैं, वही मनुष्य को पुनर्जन्म के बंधन में बांधते हैं, निष्काम कर्म नहीं ।

गीता (५।१०) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—‘कर्म तो तुझे करना ही पड़ेगा, कर्म किए बिना तू रह नहीं सकता, तो अकलमंदी इसी में है कि जो करे उसे ब्रह्मार्पण कर दे, अनासक्त होकर कर्म कर, फिर तू कर्मों के फल से उसी तरह निर्लिप्त रहेगा जैसे जल में रहते हुए कमल ।’

जल में जैसे कमल है रहता, जग में वैसे रहना है!

कितना निर्लिप्त व अछूता रहता है कमल सरोवर में जल से ! पैदा होता है पानी में, बढ़ता-पनपता भी पानी में है, विकसित भी पानी में होता है, पानी में ही खिलता है, पानी में ही आठों पहर बसता है; परंतु पानी से सर्वथा अछूता, पानी को वह अपने ऊपर ठहरने ही नहीं देता, अपने से चिपकने नहीं देता, पानी आया तुरंत उसे लुढ़का कर फेंक देता है ।

इसी तरह कमल का आदर्श लेकर मनुष्य को संसार में सभी कर्मों को परमात्मा को अर्पित करके उनके कर्मफल व पाप-पुण्य से निर्लिप्त रहना चाहिए । तब वही कर्म उसके मोक्ष का द्वार खोल देंगे ।

कोई भी वस्तु जब भगवदर्पित कर दी जाती है तब उसका महत्व बढ़ जाता है । भौतिक पदार्थ भी ईश्वर को समर्पित होने के बाद ईश्वरीय होकर विलक्षण गुणों से संपन्न हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में निष्काम कर्म को भगवान को अर्पित करने से उनका महत्व कितना बढ़ जाता है, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है ।

गीता (१२।६-७) में भगवान के वचन हैं—‘हे अर्जुन ! जो साधक मेरे परायण होकर समस्त कर्मों को मेरे समर्पण करके अनन्य योग से निरंतर मेरा चिंतन करते हुए मुझे भजते हैं, उन मुझमें चित्त लगाने वाले प्रेमी भक्तों का इस मृत्यु रूप संसार-समुद्र से मैं शीघ्र ही उद्धार कर देता हूँ ।’

संसार के आवागमन से मुक्ति सुकर्मों से नहीं मिलती; बल्कि कर्मफल से कुछ भी सम्बन्ध न रख कर ‘कर्म संन्यास’ से मिलती है ।

गीता के अनुसार ‘जो कर्म परमात्मा की प्रसन्नता के लिए, लोककल्याण के लिए, सब लोगों के उद्धार के लिए, आसक्ति, स्वार्थ और कामना को त्याग कर किया जाता है, वह बांधता नहीं और यह ‘यज्ञ’ है ।

कर्मों में कर्तापन का त्याग और फल की इच्छा का त्याग करने से मनुष्य मुझे अर्थात् मोक्षरूपी फल प्राप्त कर लेता है । यही ‘कर्म संन्यास’ है ।

हमारे चारों ओर विराजमान प्रकृति— नदी-तालाब, वृक्ष, बादल, सूर्य, चंद्रमा, वायु, अग्नि, आदि निष्काम कर्म और सेवा के सबसे अच्छे उदाहरण हैं, जिनसे हमें शिक्षा लेनी चाहिए ।

‘जीवन सेवा के लिए है, भोग के लिए नहीं’—जो कर्म अपने लिए किए जाते हैं, वे ‘भोग’ हैं और जो दूसरों के लिए किए जाते हैं वे ‘सेवा’ है—यह बात (योग) यदि जीवन में उतार लें तो जीवन यज्ञमय हो जाएगा । कर्म के साथ योग का सम्बन्ध होने पर वह मनुष्य को परम-धाम तक पहुंचाने वाला ब्रह्मयान बन जाता है ।

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