*हरि नाम संकीर्तन ही भवसागर से पार करने वाली नैया -बापू*
देव भूमि जे के न्यूज ऋषिकेश –
मानस ब्रह्म विचार राम कथा के दूसरे दिन मोरारी बापू ने हनुमान जी को केन्द्र में रखकर कथा में प्रवेश किया। उन्होंने ब्रह्म की व्याख्या करते हुए कहा कि ब्रम्ह वो होता है जो अखंड होता है। बापू ने प्रसंग में कहा कि बाल्यकाल में एक दिन हनुमान जी भूख से परेशान हो गए और उन्होंने पास के पेड़ पर लाल पका फल देखा।हनुमान जी ने सोचा कि यह लाल फल है और उसे खाने के लिए निकल पड़े हनुमान जी ने सूर्य को ही फल समझ लिया था।अमावस्या के दिन राहु सूर्य को ग्रहण लगाने वाले थे, लेकिन हनुमान जी ने सूर्य को ग्रहण लगाने से पहले ही उसे निगल लिया।सूर्य को निगलने के बाद सारा जगत सूर्य के बिना त्राहिमाम कर रहा था। इंद्रदेव सफ़ेद हाथी पर सवार होकर आए और उन्होंने देखा कि हनुमान जी सूर्य को अपने मुंह में रखकर खेल रहे हैं इंद्रदेव ने हनुमान जी पर वज्र से हनु पर प्रहार किया । बापू ने बताया कि शास्त्रो में प्रमाण है कि उनकी हनु अखंड है तनिक भी उसमें विकार नहीं आया।जिस प्रकार जिसके पास धन है वह धनवान जिसके पास ज्ञान है उसे ज्ञानवान इस प्रकार जिसके पास हनु है अर्थात थोड़ी उसे हनुमान कहते हैं। कथा में प्रवेश करते हुए बापू ने गोस्वामी तुलसी दास द्वारा नाम महिमा के महत्व को बताया उन्होंने बताया कि जिस प्रकार अमुक सब्जी या फल आदि अमुक मौसम में ही होते हैं वैसे ही जिस प्रकार सतयुग में ध्यान करने से परमात्मा की प्राप्ति होती थी उसी प्रकार कलयुग में परमात्मा का नाम ही केवल आधार है। कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरी पारा। कलयुग में केवल हरि नाम संकीर्तन ही भवसागर से पार करने वाली वह नैया है, जिस पर बैठकर पापी मनुष्य भी भव से पार हो जाता है। कहा गया है कि सतयुग में यज्ञ, द्वापर में दान, त्रेता में तप की बड़ी महिमा थी ।लेकिन इन सब में कलयुग की महिमा को बड़ा ही महान बताया गया है।