*सम्राट विक्रमादित्य और उनकी अविस्मरणीय यशगाथा*
देव भूमि जे के न्यूज –
(अंजनी सक्सेना -विभूति फीचर्स)
सम्राट विक्रमादित्य का वर्णन एक अलौकिक व्यक्ति की भाँति अनेक ग्रंथों और लोककथाओं में मिलता है। वे पिछली दो शताब्दियों से जनसामान्य के हृदयों के नायक रहे हैं। उन्होंने विदेशी आक्रांता शकों का सम्पूर्ण उन्मूलन करके भारत भूमि पर धर्म और न्याय की पुनर्स्थापना की।वे इतने लोकप्रिय सम्राट हुए कि अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गए थे।उनके बारे में कहा जाता है-
*यत्कृतम् यन्न केनापि, यद्दतं यन्न केनचित्।*
*यत्साधितमसाध्यं च विक्रमार्केण भूभुजा ॥*
अर्थात विक्रमादित्य ने वह किया जो आज तक किसी ने नहीं किया, वह दान दिया जो आज तक किसी ने नहीं दिया, वह असाध्य साधना की जो आज तक किसी ने नहीं की ।
ऐसे प्रतापी,बलशाली और विद्वान महाराजा विक्रमादित्य
का प्रारम्भिक उल्लेख स्कंद पुराण और भविष्य पुराण सहित अन्य पुराणों में भी मिलता है। उसके अतिरिक्त विक्रम चरित्र, कालक-कथा, बृहत्कथा, गाथा-सप्तशती, कथासरित्सागर, बेताल पचीसी, सिंहासन बत्तीसी, प्रबंध चिंतामणि सहित अनेक संस्कृत ग्रंथों में उनके यश का वर्णन विस्तार से किया गया है। जैन साहित्य के पचपन ग्रंथों में विक्रमादित्य का उल्लेख मिलता है। संस्कृत और जैन साहित्य के अतिरिक्त चीनी और अरबी-फारसी साहित्य में भी विक्रमादित्य की कथा उपलब्ध है, जो कि उनकी ऐतिहासिकता को प्रमाणित करती है।
विक्रमादित्य यानी वीरता का वह नाम जिन्हें कभी भी कोई भूल नहीं सकेगा। सवा दो हजार वर्षों के बाद आज भी उनके नाम से इतिहास मापा जाता है। ईसा से 101 वर्ष पूर्व जन्मे महान राजा विक्रमादित्य के नाम से अत्यंत प्राचीन हिन्दू पंचांग विक्रम संवत या विक्रमी संवत का आरम्भ हुआ। जिससे आज भी सभी भारतीय घरों में तीज त्यौहारों की गणना की जाती है।
इतिहासकार डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित का मानना है कि अठारह पुराणों में से तीन पुराण स्कंदपुराण, भविष्यपुराण और भविष्योत्तर पुराण में बताया गया है कि कलि संवत 3000 में विक्रमादित्य हुए थे। इस तरह सम्राट विक्रमादित्य का जन्म 101 ईसापूर्व में माना जाता है। वे जब सम्राट बने तो उनकी आयु 20 वर्ष थी। यह घटना 81 ईसा पूर्व की है। उनकी कुल आयु 137 वर्ष 7 माह और 15 दिन की थी। उज्जैन में उन्होंने 100 साल तक शासन किया।
*विक्रमादित्य की वीरता*
विक्रम संवत की गणना के अनुसार लगभग 2288 वर्ष पूर्व जन्मे विक्रमादित्य का वास्तविक नाम विक्रमसेन था। उनके पिता उज्जैन के राजा गन्धर्व सेन और माता सौम्यदर्शना थीं। बचपन से ही निर्भीक और पराक्रमी विक्रम के आगे चलकर भारत के चक्रवर्ती सम्राट बनने की कहानी तो जैसे स्वयं महादेव ने ही लिख रखी थी।
जब बर्बर शकों ने भारत पर आक्रमण किया तो विक्रमादित्य के पिता राजा गर्दभिल्ल यानी राजा गंधर्वसेन के साथ उनका भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में राजा गर्दभिल्ल की पराजय हुई और शकों ने भारत में अपनी जीत की निशानी के तौर पर शक संवत की शुरुआत कर दी। धीरे-धीरे शकों ने भारत के कई भागों को अपने कब्ज़े में ले लिया। जब शकों ने सम्पूर्ण भारत में हाहाकार मचा रखा था तो दूसरी ओर विक्रमसेन अपनी विराट महाकाल सेना तैयार कर रहे थे और फिर विक्रमादित्य ने न केवल शकों को भारत से भागने पर मजबूर कर दिया बल्कि भारत के अपने विशाल साम्राज्य को अरब से लेकर तुर्की तक भी फैला दिया।
*विक्रम संवत की स्थापना*
57 ईसा पूर्व में शकों का काल बनकर युद्ध जीतने के बाद विक्रमादित्य ने शकों पर विजय के उपलक्ष्य में विक्रम संवत की स्थापना की। भारत के इस गौरवमयी विक्रम युग में विक्रमादित्य ने अपने साम्राज्य का विस्तार करना आरम्भ किया। विक्रम युग की महिमा इस तथ्य से ज्ञात होती है कि आज भी भारत के साथ ही नेपाल का भी सर्वमान्य संवत ‘विक्रम संवत’ ही है।
*विक्रमादित्य का भव्य साम्राज्य*
महाराजा विक्रमादित्य के भव्य साम्राज्य का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि आज के भारत,पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, तज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, कज़ाकिस्तान, तुर्की, अफ़्रीका, अरब, नेपाल, थाईलैंड, इंडोनेशिया, कंबोडिया, श्रीलंका, चीन और रोम तक, राजा विक्रमादित्य का साम्राज्य फैला हुआ था।
*विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्न*
सम्राट विक्रमादित्य न केवल उच्च व्यक्तित्व के स्वामी थे बल्कि उनमें किसी भी व्यक्ति को परखने की भी अद्भुत क्षमता थी। शायद यही वजह थी कि वे पहले ऐसे राजा थे जिनका दरबार धन्वन्तरी, क्षपंका, अमर्सिम्हा, शंखु खाताकर्पारा, कालिदास, भट्टी, वररुचि, वराहमिहिर जैसे उच्च कोटि के विद्वान और महान नवरत्नों से प्रतिष्ठित था।
*विक्रमादित्य की न्यायप्रियता*
अपने अनुपम साहस, कर्तव्यपरायणता और युद्धकला के लिए प्रसिद्ध महाराजा विक्रमादित्य ऐसे चक्रवर्ती हिन्दू सम्राट थे जिन्होंने न्यायप्रियता, उदारता और ज्ञान के नये कीर्तिमान स्थापित किए। सम्राट विक्रमादित्य की बुद्धिमत्ता, पराक्रम ,न्यायप्रियता और महानता के विषय में संस्कृत,प्राकृत, हिन्दी, बंगला, गुजराती आदि बहुत सी भाषाओं में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें बृहत्कथा,बेताल पच्चीसी और सिंहासन बत्तीसी की कहानियां बेहद लोकप्रिय हैं।
सम्राट विक्रमादित्य अपने राज्य की जनता के कष्टों को समझने और उनका हालचाल जानने के लिए वेश बदलकर नगर भ्रमण करते थे और अपने राज्य में न्याय व्यवस्था कायम रखने के लिए हर संभव प्रयास करते थे। इतिहास में वे सबसे लोकप्रिय और न्यायप्रिय राजाओं में से एक माने जाते हैं। उन्होंने अपने राज्य में राम राज्य की स्थापना की और भारतीय संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व तक पहुँचाया। तभी तो लगभग सवा दो हजार वर्ष बीत जाने के बाद भी सम्राट विक्रमादित्य की कीर्ति पताका अविस्मरणीय यशगाथा के साथ गर्व से लहरा रही है।(विभूति फीचर्स)
*चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नववर्ष के नव संकल्प*
(शिवप्रकाश-विनायक फीचर्स)
भारतीय कालगणना के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को विक्रमी संवत 2082 प्रारंभ हो रहा है ।आंग्ल तिथि के अनुसार 30 मार्च रविवार का यह दिन है । भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक अनेक ऐतिहासिक प्रसंग चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ जुड़ें है । पृथ्वी की उत्पत्ति के कारण पृथ्वी संवत, सृष्टि प्रारंभ दिवस के कारण सृष्टि संवत, श्रीराम जी का राज्याभिषेक, कलयुग संवत,युधिष्टिर संवत, विक्रम संवत (2082), शालिवाहनशकसंवत (1947),युगाब्द(5127),मालव संवत, गुडी पड़वा, आर्य समाज स्थापना, उगादि, गुरु अंगद देव का जन्म दिवस एवं झूलेलाल जी का अवतरण दिवस आदि सभी प्रेरणा दिवस इस शुभ दिन के साथ जुड़े है। शक्ति की उपासना के प्रतीक नवदुर्गा का प्रारंभ एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ०केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी वर्षप्रतिपदा ही है।
भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक जीवन की समस्त विधाओं में भारत की अग्रगणीयता, आर्थिक समृद्धि,प्रकृति में वसंत अर्थात सम्यक परिवर्तन की दिशा का संदेश संपूर्ण मानवता को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा देती आई है । भारतीय समाज में व्यैक्तिक एवं सामूहिक जीवन में उत्थान के लिए नव वर्ष पर नव संकल्प लेने की परंपरा है।इस विक्रम संवत के आगमन पर हम हर्ष एवं उल्लास के साथ नव वर्ष का स्वागत करें एवं भावी समाज को संरक्षित करने की दिशा में नवसंकल्प लें।
शारीरिक :- “शरीरमाध्यम्खलु धर्म साधनम्”(अर्थात धर्म के साधन का मार्ग स्वस्थ शरीर ही है) भारत में असावधानी के कारण हमारा खानपान स्थूल(मोटापा) शरीर का निर्माण कर रहा है । जिसके कारण अनेक रोग हमारे शरीर को अपना घर बना रहे हैं ।दुनिया के देशों की तुलना में हमारे देश में गंभीर रोगों का औसत अधिक है । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए “फिट इंडिया” का संदेश दिया था ।नव वर्ष पर यदि हम अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या में संतुलित आहार, व्यायाम एवं योग को स्थान देंगे तब हमारा स्वास्थ्यअच्छा होगा। हमारा स्वास्थ्य ही राष्ट्र के स्वास्थ्य से जुड़ा है । इसको हम प्रतिदिन का संकल्प बनाएं।
*पारिवारिक*
भारतीय समाज के चिरंजीवी होने के अनेक कारणों में से महत्वपूर्ण है हमारी पारिवारिक व्यवस्था। संपूर्ण विश्व इस पारिवारिक व्यवस्था का अध्ययन एवं अनुपालन करने का प्रयास कर रहा है । परिवार के सभी सदस्यों में सामूहिकता, सुरक्षा, परस्पर प्रेम और आत्मीयता का अंकुरण होता है । परिवार टूटने के कारण ही दुनिया के देश अपने बजट का बड़ा भाग सामाजिक सुरक्षा पर खर्च कर रहे हैं ।भारत में दुनिया की तुलना में यह न्यून है। हम अपने परिवार के वृद्धों को सम्मान एवं आत्मीयता दें । इसका परिणाम होगा कि नवीन पीढ़ी में भी यह संस्कार आएगा । परिवार के सदस्य सामूहिक भोजन, सामूहिक भजन एवं वर्ष में एक-दो बार विशेष प्रसंगों पर वृहद् परिवार मिलन कर पारिवारिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का संकल्प लें ।
*भाषा सीखे*
विशाल भूभाग वाले अपने देश में अनेक भाषाओं एवं बोलियों का उपयोग होता है | सभी भाषाओं में एक अन्तर्निहित एकात्मता है | हम अपनी मातृभाषा के साथ-साथ एक और दूसरे प्रदेश की भाषा सीखने का प्रयास करें । जिसके कारण हम उस भाषा के साहित्य में छिपे तत्वज्ञान,महापुरुषों एवं परंपराओं को समझ सकेंगे, एवं राष्ट्र की एकात्मता वृद्धि में सहयोगी बन सकेंगे ।
*नागरिक अनुशासन*
देश के संविधान के प्रति आदर एवं श्रद्धा भाव, देश को सुचारू संचालित करने के लिए बनी व्यवस्थाओं का अनुपालन, देश की सम्पत्तियों का संरक्षण, नियमों का पालन,शुचिता पूर्ण कर्तव्य निष्ठ व्यवहार करने से देश में अनुशासन का भाव निर्माण होगा । यह अनुशासन ही किसी भी देश की महानता की गारंटी है । अभावग्रस्त समाज के लोगों को शिक्षा,भोजन,कार्य कुशलता निर्माण कर सेवा के माध्यम से समृद्ध करें। अपने चारों तरफ होने वाली घटनाओं के प्रति सजग रहते हुए समाज में सुरक्षितता का वातावरण बनाएं। नए-नए प्रयोगों के द्वारा रोज़गार प्रदान करते हुए भारत को आर्थिक समृद्ध कर, विकसित भारत के संकल्प की पूर्ति में सहायक होना हमारा संकल्प बने ।
*संयमित एवं सादगी पूर्ण जीवन शैली*
पंडित दीन दयाल उपाध्याय द्वारा स्थापित सिद्धांत “खर्च में संयम एवं उत्पादन में वृद्धि हम सभी के लिए मार्गदर्शक है ।”आय से अधिक खर्च किसी भी समाज में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है । समाज में एक दूसरे को देखकर अधिक खर्च की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है | शादी-विवाह एवं शुभ प्रसंगों के समय बर्बाद होता भोजन यह राष्ट्र की संपत्ति का ही नुकसान है । यह दृष्टि लेकर व्यक्तिगत जीवन में सादगी एवं संयम पूर्ण व्यवहार से समाज को सम्यक दिशा दें | प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी अन्न की बर्बादी के संबंध में सम्पूर्ण देश को सचेत किया था।
*महिला सशक्तिकरण*
हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथो में माँ (स्त्री) का बड़ा श्रेष्ठ स्थान (यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ) था । कालांतर में समाज में अनेक कुप्रथाए आई । आज भी समाज में हृदय को विदीर्ण करने वाली अनेक घटनाएं होती रहती है । महिला हिंसा एवं दुर्व्यवहार को समाप्त करें। समाज में महिलाओं को समान स्थान,समान अवसर, निर्णयों में समान सहभागिता का वातावरण बनाने में हम सभी सहभागी बने।
*पर्यावरण संरक्षण*
महात्मा गाँधी जी का प्रसिद्ध वाक्य ““The Earth has enough resources for our need but not for our greed.”भोगवादी जीवन शैली एवं प्रकृति के संसाधनों पर कब्जे की मनोवृति के कारण हमने पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की है । जिसका परिणाम है प्रदूषण एवं तापमान में वृद्धि। अनेक विद्वानों एवं पर्यावरण केंद्रित संस्थाओं के आकड़े हमें चिंतित करने वाले है। मनुष्य का जीवन भविष्य में सुरक्षित रहेगा अथवा नहीं यह सभी की चिंता का विषय है। हम इस नव वर्ष पर अपना जीवन पर्यावरण को संरक्षित करनेवाला बनाएं, एवं जल, भोजन, वायु, वनस्पति सभी शुद्ध रहे इसका संकल्प लें।
*संस्कृति स्वाभिमान*
हमारी संस्कृति त्यागमयी एवं सभी के कल्याण का विचार करने वाली है। इस कारण विश्व शांति की गारंटी भारतीय संस्कृति ही है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हमको इस सांस्कृतिक गौरव का ही स्मरण कराती है। हम स्वयं एवं आने वाली पीढ़ी में अपने महापुरुषों, अपनी परंपराओं के प्रति यह गौरव के भाव को जागृत करने का संकल्प लें। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के उत्सव को व्यक्तिगत के साथ-साथ समाज का उत्सव बनाते हुए, हम अपने व्यक्तिगत जीवन एवं समाज जीवन में यह संकल्प ले तब नव वर्ष की सार्थकता सिद्ध होगी।(विनायक फीचर्स)(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री हैं।)
*सनातन की प्रामाणिकता को समझने का विशेष अवसर है नव संवत्सर*
(डॉ. राघवेंद्र शर्मा -विभूति फीचर्स)
नव संवत्सर का महापर्व गुड़ी पड़वा, वर्ष प्रतिपदा, उगादि, चैत्र मास की नवरात्रि, रामनवमी और फिर हनुमान जयंती। अनेक त्यौहारों का यह समूह भारतीय नव वर्ष का उद्घोष तो है ही, एक स्वर्ण अवसर भी है, यह समझने और जानने का कि वास्तव में हमारी भारतीय संस्कृति कितनी पुरातन, गौरवशाली और समृद्धशाली रही है। पहले हम विक्रम संवत्सर की बात करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार आगामी 29 मार्च 2025 की संध्याकाल में 4:27 पर विक्रम संवत 2082 की वर्ष प्रतिपदा प्रारंभ हो रही है, जो कि अगले दिन यानी 30 मार्च 2025 को मध्यान्ह 12:49 तक रहने वाली है। क्योंकि इस तिथि में सूर्योदय 30 मार्च को होने जा रहा है। फल स्वरुप वर्ष प्रतिपदा 30 मार्च को मनायी जाना सुनिश्चित है। सर्व विदित है कि हम यह त्यौहार सम्राट विक्रमादित्य द्वारा स्थापित विक्रम संवत के अनुसार आने वाले नव वर्ष के रूप में मनाते चले आ रहे हैं। इतिहास की मानें तो सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को हराने के बाद उस संवत्सर की स्थापना की थी जो अब 2081 वर्ष पुराना हो चुका है और हम 30 मार्च को संवत्सर 2082 की वर्ष प्रतिपदा मनाने जा रहे हैं। जहां तक मानवीय सभ्यता की बात है तो इसे समूचे विश्व में ईस्वी सन के माध्यम से आंका जाता है जो अभी 2025 से साक्षात्कार कर रहा है। दुर्भाग्य जनक बात यह है कि पश्चिमी सभ्यता से दिग्भ्रमित अनेक भारतीय विद्वान भी भारतीय सनातन की पुरातनता को भूलकर ईस्वी सन को ही सर्वाधिक पुरानी सभ्यता प्रतिपादित करने में लगे रहते हैं।
आशय यह कि यदि पश्चिमी सभ्यता को आधार मानकर मानवीय समृद्धि का आकलन किया जाए तो वह केवल 2025 साल पुरानी ही प्रमाणित हो पाती है। जबकि भारतीय संवत्सर 2082 यह प्रतिपादित करता है कि हमारे यहां पश्चिमी दुनिया से लगभग 57 साल पहले विक्रम संवत स्थापित हो चुका था। यह भी इतिहास में दर्ज है कि सम्राट विक्रमादित्य का शासन काल इतना समृद्ध और विकसित रहा है, जिसके जीवंत प्रमाण भारत में आज भी मौजूद हैं और इसकी संपन्नता के उदाहरण दुनिया भर में दिए जाते हैं। दिन के उजाले की तरह सहज सत्य है कि सम्राट विक्रमादित्य भारतीय सभ्यता में पहले शासक नहीं थे। उनके पहले भी अनेक सभ्यताएं भारत वर्ष में स्थापित हुईं और उन्होंने अपने ज्ञान एवं अनुभवों से पूरे विश्व को लाभान्वित किया। यदि कलियुग की ही बात की जाए तो हमारी सभ्यता कम से कम 5000 वर्ष पुरानी तो हो ही जाती है। क्योंकि हमारे ग्रंथ बताते हैं कि द्वापर युग के दौरान आज से लगभग 5124 साल पहले कुरुवंशी महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक वर्ष प्रतिपदा के दिन ही हुआ था। सब जानते हैं कि पांडवों के स्वर्गारोहण से पूर्व राजा परीक्षित ने जब भारत का राज्य शासन संभाला तब ही कलयुग का प्रारंभ हो गया था। उसी के प्रभाव से वशीभूत होकर राजा परीक्षित ने एक संत के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया था। फल स्वरुप राजा परीक्षित की मृत्यु सर्पदंश के कारण ही हुई थी। इस वर्णन के हिसाब से देखा जाए तो भारतीय सनातन की गौरवशाली एवं समृद्धशाली सभ्यता का इतिहास 5000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। केवल कलयुग की ही काल गणना की जाए तो अभी युगाब्ध 5126 प्रचलन में है। इस आधार पर हमारी सभ्यता 5000 सालों से भी अधिक पुरानी हो जाती है। किंतु महाराज युधिष्ठिर को भी भारतीय सभ्यता का प्रथम शासक नहीं माना गया। उनके पहले भी राजा भरत से लेकर पांडु अथवा धृतराष्ट्र तक कुरुवंशियों की अनेक पीढ़ियों ने भारतवर्ष पर शासन किया है। इन सबकी गणना की जाए तो तब से लेकर अभी तक भारतीय सभ्यता 8 लाख 64000 सालों का बेहद संपन्न दौर पूरा कर चुकी है। इससे भी पहले त्रेता युग में सूर्यवंशियों की स्वर्णिम आभा भारतीय सनातन को अपने ऐश्वर्य और वैभव से दैदीप्यमान करती रही हैं। जिसमें राजा इक्ष्वाकु से शुरू होकर लव कुश तक के राजा विश्व के बहुत बड़े भूभाग पर शासन करते रहे हैं, जिसमें भारतवर्ष सत्ता का केंद्र बना रहा। उस युग की काल गणना कर ली जाए तो उसे गुजरे हुए अभी तक 12 लाख 96 हजार सालों का समय गुजर चुका है। जबकि सूर्यवंश की शुरुआत सतयुग में ब्रह्मा जी से है। ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि, उनके पुत्र कश्यप और फिर विवस्वान से सूर्यवंश का प्रादुर्भाव माना जाता है। राजा हरिश्चंद्र का प्रसंग इसी कालखंड का प्रामाणिक इतिहास है। हमारे धर्मशास्त्र बताते हैं कि महाराजा हरिश्चंद्र का शासन विश्व की सर्वोत्कृष्ट सभ्यताओं, ऐश्वर्य वैभव का स्थापित प्रमाण है। यानि कि भारतीय सभ्यता सतयुग में भी समृद्धशाली रही, जिसे गुजरे हुए कम से कम 17 लाख 28 हजार वर्ष का समय व्यतीत हो चुका है।
इस प्रकार देखें तो भारतीय सभ्यता स्वत: ही सनातन सिद्ध हो जाती है। सनातन का मतलब जो सृष्टि के प्राकट्य के साथ ही था, आज भी है और सदैव बना रहेगा। विश्व की अन्य सभ्यताएं भले ही बंदरों को मनुष्यों का पूर्वज मानती रही हैं। लेकिन हमारे लाखों साल पुराने वेद, पुराण, शास्त्र यह प्रतिपादित करते हैं कि भारतीय सभ्यता इस ब्रह्मांड के प्राकट्य के साथ ही अस्तित्व में आई और युगों युगों से पूरे विश्व का मार्गदर्शन करती रही। कालांतर में विदेशी लुटेरों, आक्रांताओं ने सोने की चिड़िया के नाम से विश्व प्रसिद्ध भारतवर्ष पर निरंतर आक्रमण किये। उसे लूटा खसोटा तथा हर उस प्रतीक को मिटाने के जी तोड़ प्रयास किए गए, जो भारतीय सभ्यता की सनातनता को प्रमाणित करते रहे। हमारी गौरवशाली और समृद्धशाली संस्कृति को मिटाने के हर संभव प्रयास किए गए। इसके बावजूद भी आज जब खुदाई के दौरान धरती के गर्भ में पुराने विकसित नगर दिखाई देते हैं, तब सत्यता सर्वोच्च गर्जना के साथ उद्घोष करती है कि विश्व में भारत से पुरानी सभ्यता और कोई नहीं। वर्ष प्रतिपदा स्वयं यह बताती है कि वह आज ही का दिन था, जब ब्रह्मा जी द्वारा ब्रह्मांड की सृष्टि की शुरुआत की गई थी। क्योंकि इसी दिन सृष्टि अस्तित्व में आई तो सतयुग की शुरुआत भी वर्ष प्रतिपदा से ही मानी जाती है। वह आज ही का दिन था जब श्री हरि विष्णु जी ने प्रलय के दौरान मत्स्य अवतार लेकर प्रकृति के बीजों का संरक्षण व संवर्धन किया था। यही वह दिन है जब श्री राम ने त्रेता युग में वानर राज बालि का वध किया था।
और भी बहुत सारे शास्त्रीय, पौराणिक, वैदिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक प्रसंग हैं, जो वर्ष प्रतिपदा को प्रमाणिकता प्रदान करते हैं। साथ में यह प्रतिपादित भी करते हैं कि भारतीय संस्कृति का वास्तविक स्वरूप सनातन ही है। जो सृष्टि के प्राकट्य के साथ ही अस्तित्व में थी, वर्तमान में है और भविष्य में सदैव बनी रहेगी। हर भारतीय को इस त्यौहार पर गर्व करना चाहिए। देश विदेश में भारतीय संस्कृति का परचम लहराने वाले सभी सनातनी हिंदुओं अर्थात भारतीयों को वर्ष प्रतिपदा की ढेर सारी बधाइयां और हार्दिक शुभकामनाएं।(विभूति फीचर्स)
*चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नववर्ष के नव संकल्प*
(शिवप्रकाश-विनायक फीचर्स)
भारतीय कालगणना के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को विक्रमी संवत 2082 प्रारंभ हो रहा है ।आंग्ल तिथि के अनुसार 30 मार्च रविवार का यह दिन है । भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक अनेक ऐतिहासिक प्रसंग चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ जुड़ें है । पृथ्वी की उत्पत्ति के कारण पृथ्वी संवत, सृष्टि प्रारंभ दिवस के कारण सृष्टि संवत, श्रीराम जी का राज्याभिषेक, कलयुग संवत,युधिष्टिर संवत, विक्रम संवत (2082), शालिवाहनशकसंवत (1947),युगाब्द(5127),मालव संवत, गुडी पड़वा, आर्य समाज स्थापना, उगादि, गुरु अंगद देव का जन्म दिवस एवं झूलेलाल जी का अवतरण दिवस आदि सभी प्रेरणा दिवस इस शुभ दिन के साथ जुड़े है। शक्ति की उपासना के प्रतीक नवदुर्गा का प्रारंभ एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ०केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी वर्षप्रतिपदा ही है।
भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक जीवन की समस्त विधाओं में भारत की अग्रगणीयता, आर्थिक समृद्धि,प्रकृति में वसंत अर्थात सम्यक परिवर्तन की दिशा का संदेश संपूर्ण मानवता को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा देती आई है । भारतीय समाज में व्यैक्तिक एवं सामूहिक जीवन में उत्थान के लिए नव वर्ष पर नव संकल्प लेने की परंपरा है।इस विक्रम संवत के आगमन पर हम हर्ष एवं उल्लास के साथ नव वर्ष का स्वागत करें एवं भावी समाज को संरक्षित करने की दिशा में नवसंकल्प लें।
शारीरिक :- “शरीरमाध्यम्खलु धर्म साधनम्”(अर्थात धर्म के साधन का मार्ग स्वस्थ शरीर ही है) भारत में असावधानी के कारण हमारा खानपान स्थूल(मोटापा) शरीर का निर्माण कर रहा है । जिसके कारण अनेक रोग हमारे शरीर को अपना घर बना रहे हैं ।दुनिया के देशों की तुलना में हमारे देश में गंभीर रोगों का औसत अधिक है । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए “फिट इंडिया” का संदेश दिया था ।नव वर्ष पर यदि हम अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या में संतुलित आहार, व्यायाम एवं योग को स्थान देंगे तब हमारा स्वास्थ्यअच्छा होगा। हमारा स्वास्थ्य ही राष्ट्र के स्वास्थ्य से जुड़ा है । इसको हम प्रतिदिन का संकल्प बनाएं।
*पारिवारिक*
भारतीय समाज के चिरंजीवी होने के अनेक कारणों में से महत्वपूर्ण है हमारी पारिवारिक व्यवस्था। संपूर्ण विश्व इस पारिवारिक व्यवस्था का अध्ययन एवं अनुपालन करने का प्रयास कर रहा है । परिवार के सभी सदस्यों में सामूहिकता, सुरक्षा, परस्पर प्रेम और आत्मीयता का अंकुरण होता है । परिवार टूटने के कारण ही दुनिया के देश अपने बजट का बड़ा भाग सामाजिक सुरक्षा पर खर्च कर रहे हैं ।भारत में दुनिया की तुलना में यह न्यून है। हम अपने परिवार के वृद्धों को सम्मान एवं आत्मीयता दें । इसका परिणाम होगा कि नवीन पीढ़ी में भी यह संस्कार आएगा । परिवार के सदस्य सामूहिक भोजन, सामूहिक भजन एवं वर्ष में एक-दो बार विशेष प्रसंगों पर वृहद् परिवार मिलन कर पारिवारिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का संकल्प लें ।
*भाषा सीखे*
विशाल भूभाग वाले अपने देश में अनेक भाषाओं एवं बोलियों का उपयोग होता है | सभी भाषाओं में एक अन्तर्निहित एकात्मता है | हम अपनी मातृभाषा के साथ-साथ एक और दूसरे प्रदेश की भाषा सीखने का प्रयास करें । जिसके कारण हम उस भाषा के साहित्य में छिपे तत्वज्ञान,महापुरुषों एवं परंपराओं को समझ सकेंगे, एवं राष्ट्र की एकात्मता वृद्धि में सहयोगी बन सकेंगे ।
*नागरिक अनुशासन*
देश के संविधान के प्रति आदर एवं श्रद्धा भाव, देश को सुचारू संचालित करने के लिए बनी व्यवस्थाओं का अनुपालन, देश की सम्पत्तियों का संरक्षण, नियमों का पालन,शुचिता पूर्ण कर्तव्य निष्ठ व्यवहार करने से देश में अनुशासन का भाव निर्माण होगा । यह अनुशासन ही किसी भी देश की महानता की गारंटी है । अभावग्रस्त समाज के लोगों को शिक्षा,भोजन,कार्य कुशलता निर्माण कर सेवा के माध्यम से समृद्ध करें। अपने चारों तरफ होने वाली घटनाओं के प्रति सजग रहते हुए समाज में सुरक्षितता का वातावरण बनाएं। नए-नए प्रयोगों के द्वारा रोज़गार प्रदान करते हुए भारत को आर्थिक समृद्ध कर, विकसित भारत के संकल्प की पूर्ति में सहायक होना हमारा संकल्प बने ।
*संयमित एवं सादगी पूर्ण जीवन शैली*
पंडित दीन दयाल उपाध्याय द्वारा स्थापित सिद्धांत “खर्च में संयम एवं उत्पादन में वृद्धि हम सभी के लिए मार्गदर्शक है ।”आय से अधिक खर्च किसी भी समाज में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है । समाज में एक दूसरे को देखकर अधिक खर्च की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है | शादी-विवाह एवं शुभ प्रसंगों के समय बर्बाद होता भोजन यह राष्ट्र की संपत्ति का ही नुकसान है । यह दृष्टि लेकर व्यक्तिगत जीवन में सादगी एवं संयम पूर्ण व्यवहार से समाज को सम्यक दिशा दें | प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी अन्न की बर्बादी के संबंध में सम्पूर्ण देश को सचेत किया था।
*महिला सशक्तिकरण*
हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथो में माँ (स्त्री) का बड़ा श्रेष्ठ स्थान (यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ) था । कालांतर में समाज में अनेक कुप्रथाए आई । आज भी समाज में हृदय को विदीर्ण करने वाली अनेक घटनाएं होती रहती है । महिला हिंसा एवं दुर्व्यवहार को समाप्त करें। समाज में महिलाओं को समान स्थान,समान अवसर, निर्णयों में समान सहभागिता का वातावरण बनाने में हम सभी सहभागी बने।
*पर्यावरण संरक्षण*
महात्मा गाँधी जी का प्रसिद्ध वाक्य ““The Earth has enough resources for our need but not for our greed.”भोगवादी जीवन शैली एवं प्रकृति के संसाधनों पर कब्जे की मनोवृति के कारण हमने पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की है । जिसका परिणाम है प्रदूषण एवं तापमान में वृद्धि। अनेक विद्वानों एवं पर्यावरण केंद्रित संस्थाओं के आकड़े हमें चिंतित करने वाले है। मनुष्य का जीवन भविष्य में सुरक्षित रहेगा अथवा नहीं यह सभी की चिंता का विषय है। हम इस नव वर्ष पर अपना जीवन पर्यावरण को संरक्षित करनेवाला बनाएं, एवं जल, भोजन, वायु, वनस्पति सभी शुद्ध रहे इसका संकल्प लें।
*संस्कृति स्वाभिमान*
हमारी संस्कृति त्यागमयी एवं सभी के कल्याण का विचार करने वाली है। इस कारण विश्व शांति की गारंटी भारतीय संस्कृति ही है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हमको इस सांस्कृतिक गौरव का ही स्मरण कराती है। हम स्वयं एवं आने वाली पीढ़ी में अपने महापुरुषों, अपनी परंपराओं के प्रति यह गौरव के भाव को जागृत करने का संकल्प लें। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के उत्सव को व्यक्तिगत के साथ-साथ समाज का उत्सव बनाते हुए, हम अपने व्यक्तिगत जीवन एवं समाज जीवन में यह संकल्प ले तब नव वर्ष की सार्थकता सिद्ध होगी।(विनायक फीचर्स)(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री हैं।)